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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शक्ति-निरूपण ५५ 'योगरूढ़ि' को तो 'शक्ति' माना जाता है पर 'यौगिक रूढ़ि' को 'शक्ति' नहीं माना जाता। क्योंकि यह तो 'योग' तथा 'रूढ़ि' दोनों का एक सम्मिलित नाम है । पर 'योगरूढ़ि' को 'शक्ति' इसलिये माना जाता है कि वहां 'योगविशिष्ट रूढ़िता' के कारण 'यौगिक' अर्थ से विशिष्ट एक ही अर्थ की प्रतीति होती है। ऐसा नहीं होता कि वही प्रयोग कहीं 'यौगिक' रूप में दिखाई दे तो कहीं 'रूढ़ि' के रूप में । 'यौगिकरूढ़ि' के उदाहरण के रूप 'नैयायिकों ने 'उद्भिद्' शब्द को प्रस्तुत किया है । इस शब्द का 'यौगिक' रूप में प्रयोग लता पौधे आदि के लिये होता है । द्र०उद्भवस् तरुगुल्माद्या: ( अमर०, ३.१.५१ ) । क्योंकि यहां अवयवार्थ की प्रतीति होती है । परन्तु उभिद् नामक याग के लिये इस शब्द का प्रयोग 'रूढ़ि' रूप में होता है । द्रo - उद्भिदा यजेत पशुकाम: ( ताण्ड्य महाब्राह्मण १९.७.१ - ३ ) । ' उद्भिद्' शब्द के अर्थ के विषय में मीमांसा (१.४.१.२ ) में विचार किया गया है। अश्वगन्धा तथा 'मण्डप' शब्द भी इसी तरह 'यौगिक रूढ़ि के उदाहरण हैं । यों तो 'पङ्कज' शब्द भी, जैसा कि ऊपर कहा गया है, 'भूमौ पङ्कजम् उत्पन्नम्' इत्यादि प्रयोगों में केवल 'रूढ़ि' अर्थ का तथा कल्हार कैरवमुखेष्वपि पङ्कजेषु' इत्यादि प्रयोगों में केवल 'यौगिक' अर्थ का वाचक है । परन्तु इसे 'यौगिकरूढ़ि' का उदाहरण नहीं माना जा सकता । क्योंकि एक स्थान पर केवल 'यौगिक' तथा एक स्थान पर केवल 'रूढ़ि' मानने पर 'पङ कज' को नानार्थक शब्द मानना होगाजबकि यह नानार्थक नहीं है । 'पङ्कज' शब्द केवल कमल जाति या कमल के विविध भेदों का ही वाचक है । इसलिये 'योगरूढ़ि' शक्ति को ही वहां तात्पर्यवश दोनों'यौगिक' तथा 'रूढ़ि’– अर्थों का वाचक मानना चाहिये। इसी लिये नागेश ने उसे 'तात्पर्य-ग्राहक-वशात्' कहकर 'योगरूढ़ि का ही उदाहरण स्वीकार किया है । [ संयोग आदि के द्वारा 'प्रभिधा शक्ति' का नियमन होता है] १. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सैषा शक्तिः संयोगादिभिर् नानार्थेषु नियम्यते । तदुक्तं हरिणा संयोगो' विप्रयोगश्च साहचर्यं विरोधिता । प्रर्थः प्रकरणं लिङ्गं शब्दस्यान्यस्य सन्निधिः । सामर्थ्यम् श्रचिती देशः कालो व्यक्तिः स्वरादयः । शब्दार्थस्यानवच्छेदे विशेषस्मृति-हेतवः ।। बाप• २ ३१५ में यहाँ 'संसर्गो' पाठ 1 ( वाप० २. ३१५-१६) For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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