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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (३८) तगणैर्गुरुणा च व्यक्तम् = उत्पन्नं तत् शार्दूलविक्रीडितम् । - अत्र प्रतिचरणम् ( Sss || 5 |||||S5 (5) इति स्वरवर्णकमो ज्ञेयः ॥ www.kobatirth.org ( प्रति०) विनिहिताः = दत्ताः | पर:= अन्त्यः | आदित्यै: = द्वादशभिः । तुरगैः = सप्तभिः | श्रेयस्करं = कल्याणकारकम् । व्यक्तम् = उत्पन्नम् ॥ प्रकार Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( भाषा) जिस के प्रत्येक चरण में आदि के तीन छठा आठवाँ बारहवाँ तेरहवाँ चौदहवाँ सोलहवाँ सत्रहवाँ और उन्नीसवाँ अक्षर गुरु हों, तथा बारहवें और अन्तिम अक्षर पर विश्राम हो उसे शार्दूलविक्रीडित छन्द कहते हैं । इस के प्रति चरण में मगण सगण जगण सगण तगण और एक गुरु रहने के कारण स्वर चिह्न - ( SSS IS / Silts 515 ) इस हैं ॥ ४० ॥ स्त्रग्धरा वर्णाश्चत्वार आद्या विजहति लघुतां षष्ठकः सप्तमश्च, प्रत्यङ्घ्रि द्वौ तथाऽन्यौ श्रुतिपथललितौ षोडेशाद्यौ तदन्त्यौ । विश्रान्तिर्यत्र दत्ता रसिकजनमुदे सप्तभिः सप्तभिश्च, यो पत्रिकेण स्फुटमिह विदिता स्रग्धराऽसौ घ रायाम् ॥ ४१ ॥ (१) षोड़शस्याऽऽयाविति विग्रह: । ( २ ) तस्य षोड़शस्यान्त्यौ । For Private And Personal Use Only
SR No.020917
Book TitleVruttabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
PublisherShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1929
Total Pages63
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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