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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) रचनानिपुणैः कविभिः कलितं, किल तोटकवृत्तमिदं ललितम् ॥ २३ ॥ (अन्वयः) राकला : चरणाः सगौ: रचिताः, तथा विरतिश्व रसयोः उदिता, ललितमिदं रचना निपुणैः कविभिः किल तोटकवृत्तं कलितम् ॥ (टीका) चत्वारश्चरणाः सगणे रचिताः स्युः (चतुर्भिश्चतुभिः सगौरेकैकस्य पादस्य निर्मितेः) तथा विरामश्च प्रतिपादमादितः षष्ठे षष्ठे समाचष ं २ व प्रादुर्भवेत्, तदिदं निश्चित सर्वजनमनोहरं रचनाकुशलैः कविभिः तोटकतं कलितं निरूपितम् | पत्र ( Issss ) इत्येवं प्रतिपाद स्वरवर्णक्रमः ॥ (प्रति०) विरति:= विरामः । रक्षयोः षष्ठे षष्ठे | उदिता प्रादुर्भूना | रचनानिपुणै: प्रबन्ध | किल= निश्चितम् | ललितम् = मनोहरम् ॥ ( भाषा) जिस के प्रत्येक चरण में चार चार सगण हो तथा छठे छठे अक्षर पर विश्राम हो उसको कविलोग तोटक वृत्त कहते हैं । अत एव इस में - (IIS/S/S/5 ) इस प्रकार प्रत्येक चरण का स्वरवन्यास होता है || २३ ॥ प्रमिताक्षरा गुरु पञ्चमं यदि भवेल्लघु चेद्,रससंख्यकं पुनरिहैव तदा । For Private And Personal Use Only
SR No.020917
Book TitleVruttabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
PublisherShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1929
Total Pages63
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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