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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वागता अक्षरं गुरु भवेदशमं तु, ___ व्यत्ययेन नवमं लघु यत्र । पूर्ववद्यतिमती प्रथितासा, स्वागतेति कवयः कथयन्ति ॥ २२ ॥ (अन्वयः) यत्र तु व्यत्ययेन नवममक्षरं लघु दशमं गुरु भवेत्. पूर्ववत् यतिमती प्रथिता सो स्वागता इति कवयः कथयन्ति ।। (टीका) यस्यां पुन: पूर्वस्मात वैपरीत्येन नवममक्षरं लघु दशमं गुरः भवेत, पूर्ववदेव सप्तमचतुर्थाक्षरेषु यतियुक्ता ख्याता सा स्वागता इति पण्डिताः कथयन्ति ॥ (प्रति०) तु= पुनः । व्यत्ययेनः- पूर्वोक्तवैलक्षण्येन । पूर्ववत् स्योद्धतावत । यतिमती= यतियुक्ता । प्रथिताख्याता ॥ (भाषा) जिन के प्रत्येक चरण में नववा अक्षर लधु और दशवा गुरु हो,तथा रथोद्वता के समान विश्नाम हो उसे स्वागता कहते हैं । इस के प्रत्येक चरगा में गुरु लघु-न्यास इस प्रकार हैं - (55555)॥२२॥ तोटक सकलाश्चरणाः सगणे रचिता, विरतिश्च तथा रसोरुदिता। For Private And Personal Use Only
SR No.020917
Book TitleVruttabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
PublisherShwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publication Year1929
Total Pages63
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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