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________________ ( ४० ) ॥३॥इतीसंपूर्ण॥अथबठोस्तवन ॥ बनीवनिताव नछाई कतासमजाई एदेसी ॥ जगजिनयोतजगाई संतामनन्नाई जग० टेक ॥ दिनकरयोतलाखए कबी ससहस्रबत्रीसशधकाई जिनवरयोतत्रिनोवनमांहे चउदेराज्यनरपाई जग० ॥१॥ पंचकल्याणेहोवेउ द्योतसातेनरकेलहाई नरकवासीबापडासुखपवेजा गणेजिनवरप्रगटाई जग० ॥ २ ॥ उर्धशधातिरबा केवासीदेवकोडाकोडीगाई जिनयोतेकल्याणकअव सरजाणी आवेतवधाई जग० ॥ ३ ॥ कहेजिनदा सानंदनयोहुंपनप्रभगुणगाई धनप्राणीजेणेनज रेदेख्या तीरथपतीसुखदाई जगजिनयोतजगाई ॥ ४ ॥ इतिसंपूर्ण ॥६॥ अथसातमो स्तवन॥धन्य जसपन्यबफाई तीरथपदपाई धन्य० ॥ टेक ॥ कह तकेईधनराज्यरिधिवर देवपणेअधिकाई वासुदेवव लदेव चक्रीनरमानधन्यकमाई धन्य० ॥ १ ॥ एस वीसुखदुखमयेनवीजाणो जिससिरदयेनयनाई स मुद्रमर्मकूपददुरनजाणेा पमनेमस्ताई धन्य० ॥२ काहाखरकाहाघऊका चचूडामणीकोणकहेसरखाई तिमचळतेऔरउतरते श्रीसुपासमनन्नाई धन्य० ॥ ३॥ कहेजिनदाससेवो नवीनावतरणतारणसुखदा ई सुरनरमनिवरध्यान धरतजसपोंचतसिवपुरजा ई धन्य०॥४॥इति संपूर्ण॥७॥अथशष्टमस्तवन ॥ हरीआवतबेकरजोरी एदेसी॥ नवीवंदोजिनकरजो री माहात्माए सोतीरथौरनई नवीवंदो० टेक । S
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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