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________________ ( ३९ ) न्यारासवसेप्यारा लोकोत्तरगतिवंत जिणंदा० ॥ ३ ॥ ॥ पूर्वापरगतितुमहमन्यारी किमतुममिलनहोवंत कहेजिनदासजो कोई मिलेसोतुमसमसंतमहंत जिणं दा० ॥ ४ ॥ इतिसंपूर्ण ॥ ३ ॥ अथचोथोस्तवनलिख्य ते ॥ बातएबिसरगई कईजोज्ञानीपुरषे ॥ एदेसी ॥ हरनेटनई गई मोहेकुमतिकलेसण घ० टेक अनयनयोप्रजिनंदनभेटत किनकीदरनरई वज्रमय पिंजरेहूंपैठो अखयसीकररई गई मोहें ॥ १ ॥ को णआवेञ्छुष्टापदघरमे केसरी पणनजई अग्नीजकर वाकोणचाहे मणमणीधररई गई० ॥ २ ॥ दूरख डोजुरे मोहरा यमन बाजीसवरकरगई धरी हेमथपठा ईपुत्री कूंसोआईबिलखीथई गई ॥ ३ ॥ चेष्टाकरे जिनसरणेबेठो चेतनसुमतिलई कहेजिनदासकुम तीनिरास निजतातकने गई गई मोहेकुमतिकलेसण ॥ ४ ॥ इतिसंपूर्ण ॥ ४ ॥ अथपांचमुंस्तवन ॥ सर णोंसुमतीलई सई फल्यासफलमनोरथ सरणुं टेक ॥ सुमतिजिनेस्वर सुमतीजा कुमती निवारणवई ज्युसुरतरूतलेबेठाजुगलनरल हेमनवैवंतजई सई० ॥ १ ॥ कामकुंनचिंतामणिसु रकुं पूरे इच्छामनमई ज्योंदुरनिजायंवरपासेत्योंजिनदुरगतीगई सर० ॥ २ ॥ भूखननाजीची अनुकूलेप्यास सरेनगई अ ग्नीजलजोगेनबजाई शीतउने नगई सई ॥ ३ ॥ कहे जिनदास भाज्ञसिरोमणी समजोसोनरसई जिन सरणोलई शिवनवस्योतो विरथावेटतसथई सर०
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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