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________________ ( २०५ ) देखावताहै, यहसुनके श्रावकने उसकी परीक्षाके लिये बलसे उस्केपांव गरमजलसे धोवाय दिये, नोजनके बाद वह तापस पांवमेंलेपका अंशहै ऐसे धोखेसे जलपर चलनेलगा सोमबा, तब मि थ्यावृष्टिलोग उसका कपटदेखके जिनमतमे श्रछा वान् ऊवे। अनंतर जिनमतकी प्रभावना कनेकी इच्छासे आर्यसमितसूरि वेन्लानदीमे चूर्णडाल के सबलोगोंके साम्हने कहनेलगे, हेवेन्ले! हमलो ग तुम्हारे उसपार जायगे, इतना कहतेही वेन्ना मे मार्ग होगया उसपार जायके धर्मोपदेशनादेके ब्रह्मद्वीपके सब तापस जैनी करदिये ॥ कवि८ नईनई वचनोंकी गद्यपद्य रूप चमत्कारी रचनाकर्के वर्णन करनेवाला । जैसे सिझसेन, उजनीनगरीके विक्रमादित्य राजाका पुरोहितमुकुंदनामा ब्राह्मण वाद करनेकेलिये नगुकच्छनगरको चला मार्गमे वृक्षवादी सूरी मिले तब जोहारे सो शिष्यहोय ऐ सा नियम करके गवालियों को सादीरखके दोनो वाद करने लगे, गवालियोने कहा हम संस्कृतवा णी नही समझते इससे यह ब्राह्मणकुछ नही जान ता कहके मूर्खबनायदिया, वृक्षवादीने सोचाकि पंमिताई कुबकामनदेगी इसलिये कमरमे रजोह रणबांध तालीबजाय नाचनेलगे भर मुहसेगाने लगे " नविचोरियई नविमारियइ परदारागमण निवारियइ । थोडइ थोफउ दाइयइ सग्गिमटा -
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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