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________________ ( २०४ ) . - भद्रबाहुस्वामी उनका वृत्तांत प्रसिठहै। तपस्वी ५ अष्टम दसम पद पण मासढ़पणादि तपश्चर्याका री, जैसे धान्यकसाधु ॥ प्रज्ञप्त्यादि विद्या शासन देवी सहायहै जिसको ६ जैसे वज्रस्वामी प्रसिछ हीहैं ॥ चूर्ण, अंजन, पादलेप, तिलक, गुटिका, सकल भताकर्षण और वैक्रियादि सि७ि संघ कार्य और मिथ्यात्वके नाशके लिये यथावसर इनकाप्रयोक्ता, जैसे शार्यसमित सूरी, भाभीर देशमे अचलपुर नगरथा, उसमे बहुतसे श्रावक रहतेथे, उसनगरके पास कन्ला और वेन्ला नदि योके बीचमे ब्रह्मद्वीपहै, उसमे बहुतसे तपस्वी रहतेहैं, उनमे एकतापस पादलेप क्रिया जानने से पांवमे शौषधिकालेप लगाय स्थलके ऐसा जल मे चलके नदीकेपार अचलपुरमे पारणाकरने जा ताथा, उसकोदेख बऊतसे मिथ्यादृष्टी जिनमत की निंदाकरते ऊये नावकोंसे कहा 'देखो हमारे मतके गुरूकी यह प्रत्यक्ष सिद्धीहै इससे हमारे धर्मके तुल्य दूसराधर्म नहीहै, यह सुनके उनको उत्तरदेते भर उसतपस्वीपर भक्ति न करते जिन मतही पर आरूढरहे, शनंतर अनेकसिछिसंपन्न आर्यसमितसूरी वहां आयगये, तब सब श्रावक बके आवरसे सामेला करकेलेआए, और उसता पसका वृतांत कहा, तब आर्यसमितसूरीने कहा कि यह कपटतापसहै पांवमेलेप लगायके सिछी
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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