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________________ ( १९९ . गवान बोले, यह तुम्हारेपास है हरिणेगमेषीदेव तुम्हारासेनापति, इंद्र यहसुन के हरिणेगमेषीकी प्र शंसा करके स्वस्थानको गए, अनंतर हरिणेगमेषी अपना स्वर्गसे च्युतिकाचिन्ह देखके 'जो नवीन हरिणेगमेषी होगा सोहमको मानुषदेहमे प्रतिबो धदे, ऐसी इंद्रसे प्रार्थनाकरके जंबूद्वीपके जरत त्रमे सौराष्ट्रदेशके अपनेविमानके जीतमे जो हरि गमेषी इसविमानमे होगा वह हमको प्रतिजवमे प्रतिबोधदे ऐसा लिखके वेलाकूलनगर मे रिदमन राजा केबीजसे कलावतीराणी के गर्भमे उत्पन्न हुआ, उसका देवर्द्धिनामरखा वह जब वारहवर्षका हु आ तब दोरानियो के साथ कामसुख अर मित्रों के साथ शिकारखेलनेमे तत्परहोय धर्मकी बार्तानी नही जानता था । अनंतर हरिणेगमेषीके स्थानपर दूसरा हरिणेगमेषी देव हुआ । उसने इन्द्रकेच्छाज्ञा से देवर्द्धिको प्रतिबोध देनेके लिये एकपत्रमे यह लिखाकि अपना भीतमेलिखा हुआ सफलकरो अर संसारको विषके ऐसा त्यागकरो यह हरिणेगमेषी कहता है । ऐसा लिखके वहपत्र अपने सेवककेहात से आकाश से देवर्द्धिकेऊपर फेंक दिया । देवर्द्धि वह पत्रदेखकेजी अर्थनसमका । फिर स्वप्नमेभी कहा तोभी नसमा । फिर शिकारखेलते जंग लमे चारोतरफसे बडाभयदेखायव्रत ग्रहणका करार करवायके प्रतिबोधदिया । तब देवर्द्धिने लोहिता
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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