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________________ ( १९२ ) द्वादशांगी के नयजाननेसे रुचिहोना विस्ताररुचि ७ संयमादि अनुष्ठान मे रुचिहोना क्रियारुचि ८ बहुत नजानसकनेसे थोफ्रेमे रुचिहोना संक्षेपरुचि९ अ स्तिकायधर्ममे अथवा श्रुतधर्ममे रुचि होना धर्म रुचि १० • इनकी विस्तारसे प्ररूपणा पन्नवणासूत्र मे देखलेना ॥ " " औरजी सम्यक्तके समसठभेद लिखते हैं, परमा र्थसंस्तव १ परमार्थज्ञातृसेवन २ व्यापन्नदर्शनब र्जन३ कुदर्शनवर्जन ४ यह चारश्रद्वानहैं, शुश्रूषा५ धर्मराग ६ वैयावृत्य ७ तीनलिंग हैं अर्हत८ सिठ ९ चैत्य१० श्रुत ११ धर्म १२ साधुवर्ग १३ आचार्य १४ उपाध्याय १५ प्रवचन १६ दर्शनभक्ति १७ यह दश विनयहै, जिन १८ जिनमत १९ जिनमतस्थ२० यह तीन हैं, शंका२१ कांदा२२ विचिकित्सा २३ कुदृष्टिप्रशंसा २४ तत्परिचय२५ यह पांचदूषण हैं, प्रवचनी २६ धर्मकधी २७ वादी२८ नैमित्तिक२९ तपस्वी ३० प्रज्ञप्त्यादिविद्यावान् ३१ चूर्णजनादिसि ठ ३२ कबी ३३ यह आठ प्रभावकहैं, जिनशा सनमे कुशलता३४ प्रभावना३५ तीर्थसेवा३६ स्थि रता३७ जक्ति३८ यह पांच भूषण हैं, उपनाम ३९ संवेग४० निर्वेद४१ अनुकंपा ४२ आस्तिक्य ४३ यह पांचल हैं, परतीर्थिकादिस्तुति ४४ नमस्का र४५ आलपन४६ संलपन४७ अशनादिदान ४८ गंधपुष्पादिप्रेषण४९ यह व यतनाहैं, राजाजियो
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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