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________________ ( १७९ ). - वाला मिथ्यात्वी होगा ॥ ४ यह जो लिखा 'कोई कहेछ हम तो धर्म जाणा नही इनको तो पाखंझी जाणां छां बड़ों की परंपरा चली आई इसवास्ते देवांछां, सोना वकको ऐसा कहना कदापि उचित नही है कार णकी शागममे ऐसा कहा है। 'पासत्याईणफुडं अहम्मकम्मंनिरिकएतहवि। सिढिलोहोइनधम्मएसोच्चियबंदिश्रोतिमई, १॥ पार्श्वस्थों के अधर्म कर्म देखे तथापि श्रावकको बिनयादि धर्ममे शिथिल नही होना चहिये क्योंकि वह वंदनीयही है ऐसा सिधांत है, औरनी कहा है उसी ागममे ॥ 'साहुस्सकहविखलियं दणनहोइ तत्यनि न्हेहो। पुणएगतेअम्मा पिउन्सेबोहणंदयइ,१ साधुका कुछ धर्मसेस्खलित अर्थात् भ्रष्टता दे खके श्रावकको विनयादि कार्यमे निःस्नेह नही होना चहिये, परं उस साधुको मातापिताके ऐसा एकांतमे बोधन देना चहिये, जिस्मे वह पुनः अपने धर्ममे प्रवृत्त होय ॥ ॥ ॥ औरत्नी ठाणांग सूत्रमे कहा है 'चतारिसम णोवासया पणता तंजहा अम्मापिउसमाणे नाउसमाणे मित्तसमाणे सवक्किसमाणे, ॥ ॥ इसकी व्याख्या शनयदेव सूरि कृत ॥ शम्मापिउसमाणेमाटपिटसमान उपचारं वि - - -
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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