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________________ (१४ > ने श्रीसीमंधरस्वामी पासे लेई जई लोकनेते रेवानूं देवटो अपाबूं पणि शक्तिनई तेनो उपाय 'नई ॥ ने बीजीरीतें विचार करियेतो एटलो जी धर्म रह्यो वली थोडो थको सिद्धांतरह्यांबे तेया चार्यो वली साधुयोंथकी रह्योबे तेथी तेहोनो बो उपकार मानवो जोइये । कारण जे नवकार महा मंत्र एकअखंबे तोसर्वे अखंडबे ॥ वास्ते अहो ना इयो जेने जे देशना बेठीबे तेतो हाल फरवी मु सकिल तोपण समभाव राखो कोई ऊपर द्वेष मा राखो न परिणामे धर्म करणी करो मारा जिम कपटे धर्म करणी करसो नई वली जेकोई व्रतपचखाण लीयें ते शुद्ध पालजो पले तेटला ब्र तलेजो पण मारा जिम व्रत उच्चार करीने खंडन करसो नई कारण में पण सोबतें श्रावकना १२ व्रत मांधी ७ व्रत उच्चार कीधाते संवत् १९२१ ताई सं क्षेपें पाल्या तेथी अनधन आबरूयें वध्यो । ता रपले सुकर्मना उदयथकी एकएक व्रत अनेक अनेकवार खंडन करचोबे तेना फलतो नरकनिगो द तिर्यंचगतिमां जोगव्या बुटकारो थासे पण हाल नमूणा दाखल अनधननी जेटली हाणी थईबे ने ‍ पजस वली अपमान जे पाम्यो तेसर्वे व्रत खंडन ना प्रजावळे । ने माराजीवें जेवा यकृत वली अना चारकस्या खुली रीते विस्तारपणे लखतां हिंम त चालतीनथी कारण जे कोई धर्म द्वेषीने बांच
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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