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________________ रो ने एहेमाचार्यतो नानचंदजी प्रमुखने कहेले दीक्षा मंकीने माराजिम गृहस्थावास ग्रहो तथापो ताना शिष्योने पण एहयोज उपदेश करके जेदी क्षालेवी नई व्रतपचखाण लेवानई बली दान देवो लेवो नई तेतो गांडूनं कामबे मरदोंकीतो मोवत नली एवो उपदेश करेजे अमे तुच्छ मती प्रमाणे जाणिये जेथोडा बर्षों प एगच्छ सर्वे गच्छोंथी घणो मोटो थई पसे पण एहोना परिपाक खो टाबे प्रसन्नचंद्रोत्पलालं कारमां कह्योबे ॥ धर्मत्वरितमहापुरुषंबत धर्मात्पातयतस्तमसेर्थः १॥ छिष्टोवंचितलोको निंदितजिनमार्गो बध्नातितम स्सः ॥ २ ॥ एनो अर्थ । धर्मनेविषे त्वरित अर्था त् धर्मना शराधनमां तत्पर एहवा महापुरुषने धर्मथी पातनकरे शर्थात् च्युतकरे ते महामो हनीय कर्म उपार्जनकरेछे॥१॥ जेधर्ममा द्वेष क रे नेलोगोंने कपटथी कले ने जिनमार्गनी निंदा करे ते महामोहनीयकर्म उपार्जनकरे ॥२॥ इत्या दि अनेक बचनोंथी जाणियेजे जे एहवी प्ररूप णा करणारो मोहनीयकर्मना वशथी पोते नरक मां पडे बीजानेपणि लेई पडे ॥ एम घणा म तमतांतर जैन धर्ममां थई पन्या एटला वधा मतमतांतर थयाने ते सर्व आचार्योयें वली पीला कपडावालोंये वली साधुये नाख्याने ते जोतांतो ए हवी रीस आवेने शक्ति होयतो सर्वोने पकडी
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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