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________________ ( १६६ ) धारी तो पूज्य नही है इसलिये कहते हैं - किसी साधुमे ज्ञान दर्शन चारित्र तीनो विराजमान हैं, किसी मे दो अर्थात् ज्ञान दर्शन १ ज्ञान चारित्र २ चारित्र दर्शन ३ किसी साधुमे केबल एक दर्शन ही का उद्यम है, इसलिये लिंगी अर्थात् रजोहरण मुखपत्ती यादि वेश धारण करनेवालेजी प्रायः गुण रहित नही होते हैं इसी हेतुसे सर्व सज्जनों को वेषधारी मात्रभी पूजनीय है ॥ ५ ॥ चित्रमे लिखे हुए नी चित्तरहित अर्थात् धर्मोपदेश देने मे समर्थ साधु बंदनीय है, तो फिर क्या जिन शासनमे चित्तरखनेबाला साधु बंदनीय न होगा ? (६) पुरुषोंके नाना रूप अर्थात् अनेक प्रकारके कर्म आचरण हैं और चित्रवृत्ति जी विचित्र है अर्थात् अनेक प्रकार हैं इससे बहिर्वृत्ति करके अर्थात् बाहर के आचरण करके मंद हैं हीन हैं तथापि चित्त करके दृढ होते हैं (७) मनसे वचन से जाना हुवा जो धर्माधर्म उस्को अर्जन अर्थात् संपादन करने वाले शरीरसेभी जन सब अपना हितकरलेता है (८) इसलिये बडेलोग गुणका ग्रहण करें, और सर्व दोषोंका त्याग करें, जैसा हंस पड़ी दूध और जल मिला हुवा है उसमें से दुग्धका ग्रहण करते है जलका त्याग करते हैं क्योंकि शुद्ध चित्तवालों का स्वभावही ऐसा होता है (९) इस संसारमे श्रीजिनभगवान् का नाम लेनेवाला
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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