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________________ ( १२७ ). एपण केवलीथया तारेगौतम विलखोथयोने पकयो मारेपासे दीदाले ते केवल पामे ने मनकेम नही? पडे प्रन्नुयें कह्यो तुने पण उपजस्ये पके अष्टापद तीर्थनी महिमा प्रभुना मुखेसांभलीने अष्टापदतीर्थ वांदवा गौतमगया तिहां १५०३ तापस प्रतिबो ध्या तथा धनदेवयदाने कुंडरीकपुंडरीकनूं अध्यय न कही समकाव्यूं ॥ १ ॥ ॥ __ मुनिऊपर दुगंछा नकरवी तेऊपर हरिकेशीनी कथा, पुरोहितना छोकरायें मुनिपासेथी धर्मसांन लीने दीवालीधी शुद्धचारित्रपाले पण दगंबाकरे जेसाधनाबेधोवे नहीं मेला कपमा पेरे ते देखीने दुगंकाकरे तेथी नीचगोत्र बांध्यो तिहांथी चवी पहलेदेवलोके गयो तिहांथी चवी मसाणनो रख वाल बलगोठीनामे चंडाल तेनी गोरीनामे स्त्रीन कखेावी ऊपनो कालोवर्ण कुघाट कुरूप थयो यौवन वयपाम्यो तार कोईकारण लोकघणा मल्या तिहां बेसर्पनीकल्या तमां एकविषधर ने एकबमुंह वालो, विषधरने मारीनाख्यो ने बेमंहाने निर्विष जाणी कोईये मास्योनही तेदेखी हरिकेशीये विचा यो विषजे तंजदुखदायकडे एमविचारते जाति स्मरणज्ञान अपनी देवता-नव तथा पूर्व चारित्र पाल्यो हतो तेदेख्यो स्वयंबुछे चारित्रलीधो तपसं यमपाली देवगते पाँच्यो पूर्वनवे जिम दुगंछाकरी तेम करवी नही ॥ १ ॥
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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