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________________ ( १२० ) - मारीनाख्यो नरकेगयो एम अनर्थदंझकरवो नही १ रीसनाफलनो द्रष्टांत, एकनिखारी राजगृही न गरीमा घणोन्नम्यो पण पूर्वनी अंतरायें नीखमली नही नख घणीलागी तारेक्रोध चढयो नगरी ऊपर घात करवाने इच्छे पोतानो बल नजाणतो वैना रगिरी ऊपरचढ्यो तिहांथी जोयो तो गाम नीचे ठैयो तारे मनमां विचायो जेकदी इहांथी शिला रेडकाऊं तो पापीनगरीना घणाजणा मरणपामशे एमविचारी एकमोटी शिला रडकावी तेने नारेपो ते नीचे आवीगयो कचरी मरणपामी सातमी न रकेगयो महादुख उपायो एमक्रोधकरी कोईनो घात इच्छवो नही ॥१॥ पुण्य विना बुछि पराक्रम तथा सुख ननीपजे तेऊपर दृष्टांत, एक देवदत्तनामे दरिद्री महादुखी तेपरदेशं निदा मांगवानीकल्यो एकयक्षना देव लेजई उतस्यो तेहवामां एकसिद्धपुरुष पण तिहां आवीउतयो तेनापासे एक कामघटले तेणे काम घटने कह्यो अहोकामघट ! एकघरबनाओ तथार सोई पकवानबनावो तथा स्त्री तथा नोकरचाकर बनायो तेसर्वे तत्कालवन्यो देवदत्तबेठो जोये दे खीने अचरजथई सिहपुरुषने पासेजाई पगेपछी पोतानूं सर्वदुखकह्यो तारे सिहपुरुषने दयाउपजी ने कह्यो कहेतो विद्या सीखाऊ साधनकरी काम घट मंत्रीलीजे नेकहेतो आतैयार घट आपूं तारे
SR No.020913
Book TitleViveksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1878
Total Pages237
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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