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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४ ) उपसंहार मि० गांधी में विशाल बुद्धिमत्ता होते भी वे बड़े मिलनसार थे, उनका स्वभाव बड़ा नम्रथा । उनकी वक्तृत्व शक्ति न्याय युक्त और बलवान थी। दिन रात काम करते रहने की उनकी पद्धति थी । अवकाश में भी वे विश्रांति नहीं लेते थे । अविश्रांति परिश्रम से कार्य करते रहने के कारण उनका स्वास्थ ठीक न रहता था और इस लिए उनकी अकालमृत्यु होगई, यदि यह कहा जाय तो अयुक्त न होगा। अपने धर्म की उन्नति के लिय संसार में मि. गांधी अल्प आयुही में चले गये परन्तु अन्य मनुष्यों के सम्मुख ज्वलंत दृष्टांत रख गये कि यह तुच्छ जीवन किस प्रकार अत्यन्त पूर्ण बनाया जा सकता है। पूर्वसमय में तीर्थंकर अथवा दूसरे मुनि भारत खंड के बाहर धर्मोपदेश किया करते थे परन्तु कितनी ही शताब्दियोंसे आर्यावर्त्त में ही जैनधर्म का नामावशेष रूपरहगया है। वर्तमान में उसको बाहर उज्ज्वल रूप में प्रकाशित करने का श्रेय मि० गांधी ने ही सम्पादन किया। मि० गांधी ने जो जो कार्य हाथ में लिये उन सबमें उन्हें यश प्राप्त हुआ । श्रीयुत स्वर्गस्थ मि बीरचन्द भाई की मृत्यु से जैन समाज की बड़ी हानि हुई ऐसा बीर पुरुष आज न तो दिगम्बर अथवा श्वेताम्बरों में कोई है और न भविष्य में होने की आशा है । ( २ ) श्रीमान् गांधी जी जब दूसरी बार सकुटुम्ब अमेरिका को गये, तब मांगरोल सांगीत मंडली की ओर से अंगरेजी और गुजराती भाषा में कर्मबीर स्वर्गीय संठ प्रेमचन्द रायचन्द के सभापतित्व में जो मान पत्र उन को दिया गया था । उसकी नकल पाठकों के अवलोकनार्थ नीचे देते हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.020902
Book TitleVirchand Raghavji Gandhi Ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamlal Vaishya Murar
PublisherJainilal Press
Publication Year1919
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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