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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषय-सूची सत्रहवां अधिकार ____ .... १७५-१८९ भगवान्-द्वारा पुण्य-पापादिके फलोंका विस्तृत व्याख्यान । अठारहवां अधिकार १९०-२०१ भगवान्के द्वारा रत्नत्रय धर्मका उपदेश, श्रावक-मुनिधर्मका विवेचन, उत्सर्पिणी और अव सर्पिणी के छहों कालोंका विस्तृत निरूपण । उन्नीसा अधिकार __२०२-२१९ इन्द्रको प्रार्थनापर भगवान्का नाना देशोंमें विहार, देवकृत १४ अतिशयोंका वर्णन, राजगृह-समीपस्थ विपुलाचलपर आगमन, अपने परिवारके साथ श्रेणिकका समवशरणमें आना, धर्मोपदेश सुनकर सम्यक्त्वको ग्रहण करना, अपने पूर्वभव पूछना, नरकायुका बन्ध हुआ जानकर चिन्तित होना, गौतम-द्वारा आगामी कालमें तीर्थंकर होनेको बातको सुनकर हर्षित होना, षोडश कारण भावनाओंसे तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध करना, अभयकुमारका पूर्वभव सुनकर दीक्षित होना, भगवान के चतुर्विध संघके प्रमाणका निरूपण, भगवानका निर्वाण-गमन और इन्द्रादिकोंके द्वारा निर्वाण कल्याणकका पूजन । ग्रन्थकार-द्वारा अन्तिम मंगलकामना करते हुए अपनी लघुता प्रकट करना, ग्रन्थ-परिमाण । २१९-२२१ परिशिष्ट २२३-२५५ १. श्लोकानुक्रमणिका । २. केवली और श्रुतधर-आचार्य-नामसूची। ३. तिरेसठ शलाकापुरुष-नामसूची। ४. भ. महावीरके पांचों कल्याणकोंकी तिथि और नक्षत्र । ५. भ. महावीरके ५ नाम । ६. पौराणिक नामसूची। ७. गणधरोंका जीवन-परिचय । For Private And Personal Use Only
SR No.020901
Book TitleVir Vardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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