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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ श्री-वीरवर्धमानचरित नवम अधिकार ८३-९३ भगवान महावीरका क्षीरसागरके जलसे अभिषेक, सौधर्मेन्द्र द्वारा भगवान की स्तुति और नामकरण, इन्द्राणी द्वारा वीर भगवान्के शृंगारका अद्भुत वर्णन, तत्पश्चात् इन्द्र द्वारा भगवानको माता-पिताकी गोदमें सौंपकर आनन्द नृत्य करना। दशम अधिकार ___.... ९४-१०१ देव-देवियोंके द्वारा बालरूप महावीरकी सेवा करना, भगवान की बाल-क्रीड़ाओंका वर्णन, जन्मके साथ प्राप्त हुए दश अतिशयोंका वर्णन, उनके शरीर-गत शुभ लक्षण और व्यंजनादिका वर्णन, तीस वर्ष की अवस्थामें अपने पूर्वभवोंके स्मरण होनेसे भगवानका संसारसे विरक्त होना। १०२-११२ ग्यारहवाँ अधिकार वैराग्यको बढ़ानेवाली अनित्य, अशरण आदि बारह भावनाओंका चिन्तवन । बारहवां अधिकार .... ११३-१२३ भगवान् महावीरके समीप लौकान्तिक देवोंका आगमन और स्तुति करके उनके वैराग्यका समर्थन, भगवानको विरक्त जानकर सौधर्मादि देवेन्द्रोंका सपरिवार आगमन, भगवानका उत्सवके साथ अभिषेक करके ज्ञातृखण्ड वनमें ले जाना और भगवान्का जिनदीक्षा धारण कारना। तेरहवां अधिकार १२४-१३३ भगवान्-द्वारा किये गये तपोंका वर्णन, उज्जयिनीके महाकाल वनमें रुद्र-कृत उपसर्गोंको सहना और अन्त में हारकर भगवानकी स्तुति करते हए 'अति महावीर नाम रखना, चन्दना सतीका भगवानको आहार देना और बन्धन-विमुक्त होना, भगवानका ध्यानमें तल्लीन होकर क्षपकश्रेणीपर आरोहण और कोंकी ६३ प्रकृतियोंका क्षय कर केवलज्ञानादि नव केवललब्धियोंकी प्राप्ति होना, भगवानके केवलज्ञानकी प्राप्ति जानकर सौधर्मेन्द्रका कुबेरको समवशरण रचनेके लिए आदेश देना । चौदहवां अधिकार १३४-१४७ चतुनिकायके देवोंका अपने पूर्ण वैभवके साथ ज्ञानकल्याणक मनानेके लिए आगमन और समवशरणका विस्तृत वर्णन। पन्द्रहवाँ अधिकार .... १४८-१६० समवशरण-स्थित वीरप्रभुकी महिमाका वर्णन, सौधर्मेन्द्र-द्वारा भगवानका स्तवन,दिव्यध्वनिके नहीं होनेपर सौध मन्द्रका चिन्तित होना, गौतमके पास ब्राह्मण वेषमें जाना और एक गूढ काव्यका अर्थ पूछना, अर्थ ज्ञात न होनेपर उनका इन्द्र के साथ समवशरणमें आना, वहाँ की विभूति देखकर विस्मित होना और प्रणत होकर भगवान्की स्तुति करना। सोलहवाँ अधिकार ___.... १६१-१७४ गौतम द्वारा अनेक प्रश्नोंका पूछना और वीरप्रभु-द्वारा उत्तरमें पहले सात तत्त्वोंका विस्तृत विवेचन । For Private And Personal Use Only
SR No.020901
Book TitleVir Vardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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