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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ श्री-वीरवर्धमानचरित २८. महाशुक्र स्वर्गका देव २९. प्रियमित्र चक्रवर्ती २३. पोट्टिल या प्रियमित्र चक्रवर्ती ३०. सहस्रार स्वर्गका देव २४. महाशुक्र स्वर्गका देव ३१. नन्दराज ( तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध ) २५. नन्दन राजा ( तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध ) ३२. अच्युत स्वर्गका इन्द्र २६. प्राणत स्वर्गका इन्द्र ३३. भगवान् महावीर २७. भगवान् महावीर दोनों परम्पराओंके अनुसार भगवान् महावीरके पूर्वभवोंमें उक्त छह भवोंका अन्तर कैसे पड़ा ? यह प्रश्न विद्वज्जनोंके लिए विचारणीय है । १०. गणधर-परिचय-सकलकीतिने प्रस्तुत चरित्रमें भगवान् महावीरके ११ गणधरोंके केवल नामोंका ही उल्लेख किया है, उनका परिचय कुछ भी नहीं दिया है। उन्होंने गणधरोंके जो नाम दिये हैं, वे यद्यपि उत्तरपुराणमें दिये गये नामोंसे बहुत कुछ मिलते हैं, फिर भी कुछ नाम श्वेताम्बर शास्त्रों में पाये जानेवालेसे मेल नहीं खाते हैं। उक्त तीनोंके अनुसार गणधरोंके नाम इस प्रकार हैउत्तरपुराणके अनुसार प्रस्तुत चरित्रके अनुसार श्वे. परम्पराके अनुसार १. इन्द्रभूति इन्द्रभूति इन्द्रभूति २. अग्निभूति अग्निभूति अग्निभूति ३. वायुभूति वायुभूति वायुभूति ४. सुधर्म सुधर्म ५. मौर्य मौर्यपुत्र ६. मौन्द्रय मौण्डय मण्डित ७, पुत्र आर्यव्यक्त ८. मैत्रेय मैत्रेय मेतार्य ९. अकम्पन अकम्पन अकम्पित १०. अन्धवेल अन्धवेल अचलभ्राता ११. प्रभास प्रभासे प्रभास उक्त तीनों शास्त्रोंमें प्रारम्भके चार और अन्तिम ये पाँच नाम तो समान ही हैं। मौर्य और मौर्यपुत्रको एक माना जा सकता है । दि. परम्पराके मैत्रेयके स्थानपर श्वे. परम्परामें मेतार्य है, अकम्पनके स्थान पर अकम्पित है और मौन्द्रय या मौण्डयके स्थानपर मण्डित है, जो कुछ भिन्नता रखते हुए भी सदृशलाको ही सूचित करते हैं। दि. परम्पराके अन्धवेलके स्थानपर श्वे. परम्परामें अचलभ्राता नाम है जो समानता नहीं रखता है । इसी प्रकार दि. परम्परामें आर्यव्यक्त नामका नहीं होना और उसके स्थानपर केवल 'पुत्र' नामका पाया जाना भी खटकता है। इन विचारणीय नामोंके निर्णयार्थ यहाँपर उत्तरपुराण और प्रस्तुत महावीर चरित्रके गणधर नाम-प्रतिपादक श्लोक दिये जाते हैं ततः परं जिनेन्द्रस्य वायुभूत्यग्निभूतिको । सुधर्ममौयौँ मौन्द्राख्यः पुत्रमैत्रेयसंज्ञको ॥३७३।। अकम्पनोऽन्धवेलाख्यः प्रभासश्च मया सह । एकादशेन्द्रसंपूज्याः संमतेर्गणनायकाः ॥२७४।। -उत्तरपु०, पर्व ७४ । सुधर्मा मौर्य १. उत्तर पु. ७४, श्लो. ३७१,३७४ । २. प्रस्तुत चरित्र, अधि० १९, श्लो. २०६.२०७। ३. समवायांग, समवाय ११। . For Private And Personal Use Only
SR No.020901
Book TitleVir Vardhaman Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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