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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ श्री शालिग्राम जी म० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir हिन्दीभापाटीकासहित तत्पश्चात् आप का अध्ययन नये सिरे से आरम्भ हुआ । थोड़े ही समय में आपने आगमों का अनुशीलन पूरा कर लिया । मन, वचन और कर्म - सभी दृष्टियों से शालिग्राम जी भगवान् महावीर की अहिंसक एवं परमार्थी सेना के एक विशिष्ट क्षमतासंपन्न सैनिक बन गए । आपके अंदर सेवा भावना तो बिल्कुल अनोखी थी । चाहे छोटी उम्र के हों, चाहे बड़ी उम्र के सभी प्रकार के साधु आप की सेवाओं के सुफल प्राप्त करते रहे। क्या रात, क्या दिन, और क्या शाम, क्या सुबह... बीमार साधुओं की परिचर्या में आपको अपने स्वास्थ्य - अस्वास्थ्य का ध्यान नहीं रहता था । आचार्य श्री मोती राम जी महाराज और गणावच्छेदक श्री गणपति राय जी महाराज की सेवा में आपके जीवन का पर्याप्त काल व्यतीत हुआ । जैनधर्मदिवाकर, आचार्यप्रवर हमारे महामान्य शिक्षक पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज आपके ही शिष्य हैं । इन पूज्य श्री को देखकर हमें प्रातःस्मरणीय उन श्री शालिग्राम जी महाराज के अनुपम व्यक्तित्व का कुछ आभास अनायास ही मिल जाता है। कबीर ने कहा है: निराकार की आरसी, साधी ही की देह | लखो जो चाहे लख को, इन में ही लखि लेह || और मैं तो परमश्रद्धेय श्री शालिग्राम जो महाराज के ऋणों से कभी उऋण हो ही नहीं सकता । आपकी कृपा न हुई होती तो इन आंखों के होते हुए भी में आज अंधा ही रह जाता । त्याग और विराग के इस महा मार्ग पर आप ही मुझे ले आये... पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज “जीवित विश्वकोष” कहे जाते हैं, इन का अन्तेवासित्व मुझ मंदमति को आप की ही अनुकंपा से हासिल हुआ, अन्यथा मैं आज कहां का कहां पड़ा रह जाता ! महाराज जी के अंतिम दिन लुधियाना में ही बीते । कई एक रोगों के कारण आपकी अंतिम घड़ियां बड़ी कटमय गुज़रीं । पर महाराज की आंतरिक शांति कभी भंग नहीं हुई, मनोबल हमेशा अजेय रहा । इन का अंतिम क्षण प्रशांत धीरता का प्रतीक बनकर आज भी इन आंखों के सामने मौजूद है: नोदेति, नाऽस्तमायाति, सुखे दुःखे मुखप्रभा । यथाप्राप्ते स्थितिर्यस्य स जीवन्मुक्त उच्यते ॥ (३) For Private And Personal इस प्रकार आप एक जीवन्मुक्त महात्मा थे। आप का शरीरान्त संवत् १६६६ में हुआ । उस समय आप की सेवा में श्रीवर्धमानस्थानाकवासी श्रमण संघ के आचार्य परमपूज्य गुरुदेव प्रातःस्मरणीय श्री आत्माराम जी महाराज और इन की शिष्यमंडली, मंत्री परमपूज्य श्री पृथ्वी चन्द जी म गणी श्री श्यामलाल जो म०, कविरत्न श्री अमरचन्द जी म० आदि मुनिराज भी उपस्थित थे । - ज्ञान मुनि
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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