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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अथ नवम अध्याय इस अध्ययन में श्री महाचन्द्र कुमार का जीवनवृत्तान्त वर्णित हुअा है । इस का पदार्थ भी पूर्व अध्ययनों के समान हो है, केवल नाम और स्थानादि में अन्तर है, जो कि नीचे के सत्रपाठ से ही सुस्पष्ट हो जाता है - मूल- 'नवमस्स उक्खेव । चम्पा नगरी । पुण्णभद्दे उज्जाणे । पुण्णभद्दे जक्खे । दत्ते राया । रत्तवती देवी । महचंदे कुमारे जुबराया । सिरीकंतापामोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं । जाब पुवभवे तिगिच्छिया णगरी । जितसत्तू गया। धम्मवीरिए अणगारे पडिलाभिते जाव सिद्ध । निक्खेवो । ॥ नवमं अज्झयणं समत्तं ॥ पदार्थ-नवमस्स-नवम । अज्झयणस्त-अध्ययन का । उक्खेवो - उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्ववत् जानना चाहिए । चंपा नगरी-चंपा नाम की नगरी थी, वहां । पुराणभद्दे-पूर्णभद्र नामक | उज्जाणे-उद्यान था, उस में । पुराणभद्दे - पूर्णभद्र । जक्खे - यक्ष का स्थान था । दत्त-दत्त नाम का । राया-राजा था । रत्तवती-रक्तवती । देवी - देवो - रानी थी। महचंदे - महाचन्द्र । कुमारे - कुमार । जुवराया- युवराज था । सिरीकंतापामोक्खाण- श्रीकान्ताप्रमुख । पंचसयाण-५०० । रायवाकन्नगाणं - श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ । पाणिग्गहण -पाणिग्रहण हुआ । जाव-यावत् । पुत्वभवो-पूर्वभव की पृच्छा की गई । तिगिला-चिकित्सिका नामक । णगरी-नगरी थी। जितसत्त - जितशत्र नामक । क । राया-राजा था। धम्मवीरिए-धर्मवीर्य । अणगारे -अनगार को । पडिलाभिते - प्रतिलाभित किया गया। जावयावत् । सिद्ध-सिद्ध हुआ । निक्खेत्रो - निक्षेप - उपसंहार की कल्पना पूर्व की भाँति कर लेनी चाहिये । नमं- नवम । अज्झयण अध्ययन । समतौं सम्पूर्ण हुआ। मूलार्थ - नवम अध्ययन का उत्क्षेप–प्रस्तावना पूर्व की भाँति जान लेना चाहिये। जम्बू ! चम्पा नामक नारी थी, वहां पूर्णभद्र नामक उद्यान था, उस में पूर्णभद्र यक्ष का आयतन-स्थान था। वहां के राजा का नाम दत्त था और रानी का नाम रक्तवती था, उन के युवराजपदालंकृत महाचन्द्र नाम का कुमार था, उस का श्रीकान्ताप्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ था। एक दिन पूर्णभद्र उद्यान में तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी पधारे । महाचन्द्र ने उन से श्रावक के बारह व्रतों का ग्रहण किया । गणवर देव गौतम स्वामी ने दत्त के पूर्वभव की पृच्छा की। भगवान महावीर ने उत्तर देते हुए कहा कि चिकित्सिका नामक नगरी थी। महाराज (१) छाया - नवमस्योत्क्षेप: । चम्पा नगरी । पूर्णभद्रमुद्यानम् । पूर्णभद्रो यक्षः । दत्तो राजा । रक्तवती देवी । महाचन्द्र: कुमारो युवराजः । श्रीकान्ताप्रमुखाणां पंचशतानां राजवरकन्यकानां पाणिग्रहणम् । यावत् पूर्वभवः । चिकित्सिका नगरी । जितशत्रू राजा। धर्मवीर्योऽनगार: प्रतिलाभितो यावत् सिद्धः । निक्षेपः । ॥ नवममध्ययनं समाप्तम् ॥ For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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