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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir षष्ठ अध्याय] हिन्दी भाषा टीका सहित । नगरी का राजा था, उस का नाम मित्र था। उस ने श्री संभूतविजय नाम के मुनिराज को आहार से प्रतिलाभित किया । यावत् इसी जन्म में वह सिद्धगति को प्राप्त हुआ । निक्षेप की कल्पना पूर्व की भाँति कर लेनी चाहिये। ॥छठा अध्ययन समाप्त ।। टीका-प्रस्तुत अध्ययन में धनपतिकुमार का जीवनवृत्तान्त अंकित किया गया है । उस ने भी सुबाहुकुमार की तरह पूर्वभव में सुपात्रदान से मनुष्यायु का बन्ध किया, तथा तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी से श्रावकधर्म और तदनन्तर मुनिधर्म की दीक्षा ले कर संयम के सम्यग आराधन से कर्मबन्धनों को तोड़ कर निर्वाण पद प्राप्त किया। इसभव तथा पूर्वभव में नामादि की भिन्नता के साथ २ सुबाहुकमार और धनपति कुमार के जीवनवृत्तान्त में केवल इतना ही अन्तर है कि सुबाहुकुमार तो देवलोकों में जाता हुआ और मनुष्यभव को प्राप्त करता हुआ अन्त में महाविदेह क्षेत्र में सिद्धपद प्राप्त करेगा जब कि धनपतिकुमार ने इसी जन्म में कर्मों के बन्धनों को तोड़ कर निर्वाणपद प्राप्त किया और वह सिद्ध बन गया। __ मूल में पढ़ा गया उत्क्षेप पद-जइ गां भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्त गर्ग सुहविवागाणपंचमस्स अज्झयणस्स अयम परणत, छट्टस्स णभंते ! समणेण भगवया महावीरेण जाव संपत्तण के अटे पराणते?-अर्थात् यदि भगवन् ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ले सुखविपाक के पंचम अध्याय का वह (पूर्वोक्त) अर्थ फ़रमाया है तो भगवन् ! यावत मोक्षसंग्राम श्रमण भगवान् महावीर ने सुखविपाक के छठे अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ?-इन भावों का, तथा निक्षेप पद-एवं खलु जम्बू ! समणे भगवया महावीरेणं जाव संपत्तण छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमपरागत -अर्थात हे जम्ब ! यावत मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने छठे अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है-, इन भावों का परिचायक है। -जुवरायपुत्ते जाव पुषभवे-यहां पठिन जाव - यावत पद धनपति कुमार का भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में धर्मोपदेश सुनने के अनन्तर साधुवर्म को अंगीकार करने में अपना असामथ्य प्रकट करते हुए श्रावकधर्म को ग्रहण करना और जिस रथ पर सवार होकर आया था, उसी रथ पर बैठ कर वापिस चले जाना । तदनन्तर गौतम स्वामी का उस के पूर्वजन्मसम्बन्ध में भगवान् से पूछना और भगवान् का पूर्वजन्मवृत्तान्त सुनाना इत्यादि भावों का, तथा -पडिलाभिते जाव सिद्धे- यहां पठित जाव- यावत पद - मित्र राजा का संसार को परिमित करने के साथ साथ मनुष्य आयु का बन्द करना, और मृत्यु के अनन्तर युवराजपुत्र धन - पतिकुमार के रूप में अवतरित होना तथा राजकीय ऐश्वर्य का उपभोग करते हुए जीवन व्यतीत करना । गौतम स्वामी का भगवान् महावीर से -धनपतिकमार श्रापश्री के चरणों में साधु होगा, या कि नहीं ? ऐसा प्रश्न पूछना, भगवान का-हां गौतम ! होगा. ऐसा उत्तर देना । तदनन्तर भगवान् महावीर का वहां से विहार करना । एक दिन धनपति कमार का पौषधशाला में तेला पौषध करना, उस में भगवान् के चरणों में दीक्षित होने का निश्चय करना तथा भगवान् का कनकपुरनगर के श्वेताशोक उद्यान में पधारना, राजा, धनपतिकुमार तथा नागरिकों का 'प्रभुचरणों में धर्मोपदेश श्रवण करने के लिये उपस्थित होना और उपदेश सुन लेने के अनन्तर राजा तथा नागरिकों के चले जाने पर साधुधर्म में दीक्षित होने के लिये धनपतिकमार का तैयार होना, तथा माता पिता की आज्ञा मिलने पर भगवान् का उसे दीक्षित करना और मुनिराज धनपतिकुमार का बड़ी दृढता तथा संलग्रता से संयमाराधन कर के अंत में केवलशान प्राप्त करना, आदि भावों का परिचायक है । । पष्ठ अध्याय समाप्त ।। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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