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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अथ षष्ठ अध्याय प्रथम अध्ययन से लेकर पांचवें अध्ययन तक सुपात्रदान की महिमा को श्री सुबाहुकुमार आदि नाम के विशिष्ट व्यक्तियों के जीवनवृत्तान्तों से समझाने का प्रयत्न किया गया है। उन्हीं अध्ययनों के विशद इतिवृत्त को ही इस अध्ययन में संक्षिप्त कर के श्री धनपति के जीवनवृत्तान्त द्वारा सुपात्रदान का महत्त्व दर्शाया गया है, जिस का विवरण निम्नोक्त है मूल-'छट्ठस्स उक्खेवो । कणगपुरं णगरं । सेतासोयं उज्जाणं । वीरभद्दो जक्खो । पियचंदो राया । सुभद्दादेवी । वेसमणे कुमारे जुवराया । सिरीदेवीपामोक्खाणं पंचसयाणं राजवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं । तित्थगरागमणं । धणवती जुवरायपुत्ते जाव पुव्वभवे । मणिचइया णगरी । मित्ते राया । संभूयविजए अणगारे पडिलाभिते जाव सिद्ध । निक्खेवो । ॥ छट्ट अज्झयणं समत्तं ॥ पदार्थ-छहस्स-छठे अध्ययन का । उक्खेवो-उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्व की भाँति जानना चाहिए । कणगपुरं-कनकपुर । जगरं-नगर था। सेतासोयं-श्वेताशोक नामक । उज्जाणं-उद्यान था, उस में । वीरभद्दो-वीरभद्र नाम के । जक्खो-यक्ष का यक्षायतन था। पियचन्दो-प्रिय चन्द्र । रायाराजा था। सुभद्दा-सुभद्रा नाम की । देवी-देवी थी। वेसमणो-वैश्रमण नाम का । कुमार-कुमार । जुवराया-युवराज था। सिरीदेवीपामो गर्ण-श्रीदेवीप्रमुख । पंचसयाणं- पांच सौ । राजवरकन्नगाणं-श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ । पाणिग्गहणं-पाणिग्रहण हुआ । तित्यगरागमणं-तीर्थकर भगवान का आगमन हुा । घणवती-धनपति । जुवरायपुत्त-युवराजपुत्र वहां उपस्थित हुअा। जावयावत् । पुव्वभवे-पूर्वभव की पृच्छा की गई । मणिचइया-मणिचयिका । णगरी-नगरी थी। मित्त - मित्र । गया-राजा था। संभूयविजए-संभूतविजय । अणगारे-अनगार । पडिलाभिते-प्रतिम्भित किये । जाव-यावत् । सिद्ध-सिद्ध हुए । निश्खेवो-निक्षेप - उपसंहार को कल्पना पूर्व की भाँति कर लेनी चाहिये । उ8-छठा । अज्झय- अध्ययन । समत- सम्पूर्ण हुश्रा । मूलार्थ-छठे अध्ययन का उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्ववत् जानना चाहिये । हे जम्बू ! कनकपुर नाम का नगर था । वहां श्वेताशोक उद्यान था और उस में वीरभद्र नाम के यक्ष का मन्दिर था। वहां महाराज प्रियचन्द्र का राज्य था, उस की रानी का नाम सुभद्रा देवी था, युवराजपदालंकृत कुमार का नाम वैश्रमण था, उस ने श्रीदेवीप्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह किया। उस समय तोर्थंकर भगवान महावीर स्वामी पवारे । युवराज के पुत्र धनपतिकुमार ने भगवान से श्रावक के व्रतों को ग्रहण किया। पूर्वभव की पृच्छा की गई। धनपतिकुमार पूर्वभव में मणिचयिका १-छाया षष्ठस्योत्क्षेपः । कनकपुरं नगरम् । श्वेताशोकमुद्यानम् । वीरभद्रो यक्षः । प्रियचन्द्रो राजा । सुभद्रा देवी। वैश्रमणः कुमारो युवराजः । श्रीदेवीप्रमुखाणां पंचशतानां राजवरकन्यकानां पाणिग्रहणम् । तीथकरागमनम्। धनरतियुवराजपुत्रो यावत् पूर्वभवः । मणिचयिका नगरी । मित्रो राजा । संभूतविजयोऽनगार: प्रतिलाभितो यावत् सिद्धः । निक्षेपः । || षष्ठमध्ययनं समाप्तम् । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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