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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित । ६७७ गोतम -भदन्त ! अम्बड परिव्राजक का जीव देवलोक से च्युत हो कर कहां जायेगा ? कहां पर जन्म लेगा? भगवान् गौतम ! महाविदेह नाम का एक कर्मभूमियों का क्षेत्र है। उस में अनेकों धनाढ्य एवं प्रतिष्ठित कुल हैं । अम्बड़ परिव्राजक का जीव देवलोक से च्युत हो कर उन्हीं कुलों में से एक विख्यात कुल में जन्म लेगा । जिस समय वह माता के गर्भ में आयेगा, उस समय उस के माता पिता की श्रद्धा धर्म में विशेष दृढ होने लगेगी। गर्भ काल के पूर्ण होने पर जब वह जन्म लेगा तो उस का शीररिक सौन्दर्य बड़ा अद्भुत और विलक्षण होगा। उस के गर्भ में आने से माता पिता की धार्मिक श्रद्धा में विशेष दृढ़ता उत्पन्न होने के कारण माता पिता अपने नवजात बालक का दृढ़प्रतिज्ञ-यह गुणनिष्पन्न नाम रखेगे। माता पिता के समुचित पालन पोषण से वृद्धि को प्राप्त करता हुआ दृढ़प्रतेिज बालक जब आठ वर्ष का हो जाएगा तो उसे एक सुयोग्य कलाचाय को सौंपा जाएगा। विनयशील दृड प्रतिज्ञ कुशाग्रबुद्ध होने के कारण थोड़े ही समय में विद्यासम्पन्न और कलासम्पन्न होने के साथ २ युवावस्था को भी प्राप्त हो जाएगा। तदनन्तर प्रतिभाशाली युवक दृढ़प्रतिज्ञ को सांसारिक विषयभोगों के उपभोग में समर्थ हुझा जान कर उसे सांसारिक बन्धन में फंसाने का यत्न करेंगे, परन्तु वह अनेक प्रकार के प्रयत्न करने पर भी इस बन्धन में आने के लिये सहमत नहीं होगा। अपने ब्रह्मचर्य को अखण्ड रखने का वह पूरा २ ध्यान रखेगा । तदनन्तर किसी तथारूप श्रमण को संगति से उसे सम्पकस्य का लान होगा । उस की प्राप्ति से उस में वैराग्य की भावना जागृत होगो और अन्त में वह मुनिधर्म को अंगीकार कर लेगा। गृहोत संयम व्रत का यथाविधि पालन करता हुअा मुनि दृढपतिज्ञ ज्ञान, दर्शन और चारित्र की निरतिचार आराधना से कर्ममल का नाश करके आत्मविकास की पराकाष्ठा-केवल ज्ञान को प्राप्त कर लेगा। भगवान् कहते हैं कि हे गौतम ! तदनन्तर अनेको वर्ष केवली अवस्था में रह कर अनगार दृढ़प्रतिज्ञ मासिक संलेखना ( आमरण अनशनबन) से शरीर को त्याग कर अपने ध्येय को प्राप्त करेगा । अर्थात् जिस प्रयोजन के लिए उस ने सर्व प्रकार के सांसारिक पदार्था से मोह को तोड़ कर साधु जीवन को अपनाया था, उस का वह प्रयोजन सिद्ध हो जाएगा। दूसरे शब्दों में सर्वप्रकार के कम बन्धनों का प्रात्यन्तिक विच्छेद कर वह कम रहित होकर जन्म मरण के दु:खों से सर्वथा छुट जायगा, आत्मा से परमात्मा बन जाएगा। यह है दृढ़प्रतिज्ञ का संक्षिप्त जीवनवृत्तान्त । इसा वृत्तान्त की समानता बतलाने के लिये सत्रकार ने-जहा दिढ़पतिराणेयह उल्लेख किया है । सारांश यह है कि सुबाहुकुमार भी दृढ़प्रतिज़ की भाँति मुक्ति को प्राप्त कर लेगे । --अतिए मराडे जाव पवारसति- यहां पठित-जाव-यावत पद से-भवित्ता अरणगारिश्र-इन पदों का ग्रहण करना चाहिये। इन का अर्थ पदार्थ में दिया जा चुका है । तथामहाविदेहे जाव अडढाई- यहां के जाब -यावत् पद से - बासे जाई कुलाइ भवंति- इन पदा का ग्रहण करना चाहिये । अर्थ स्पष्ट ही है। -सिज्झिहिति ५-यहां पर दिये गये ५ के अंक से-बुझिहिति, मुञ्चिहिति, परिनिव्वाहिति, लयदुवाणमंतं कारहिति -- इन पदों को संगृहीत करना चाहिये । इन का अर्थ निम्नोत है सिद्ध होगा--सकल कर्मों के क्षय से निष्ठितार्थ - कृतकृत्य होगा । बुद्ध होगा, केवलज्ञान से सम्पूर्ण वस्तुतत्त्व को जानेगा। मुक्त होगा -भवोपग्राही ( जन्मग्रहण में निमित्त भूत ) कांगों से छूट जाएगा । परिनिवृत्त होगा-कर्मजन्य जो ताप (दुःख) है उस के विरह (अभाव) हो जाने से शान्त होगा। जन्म मरण आदि के दुःखों का अन्त करेगा। सारांश यह है कि सुबाहुकुमार का जीव अपने पुनीत आचरणों से जन्म For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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