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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन] हिन्दीभाषाटीकासहित दस दसाओ प० तं०-कम्मविवागदसाओ......संखेवितदसाओ । कम्मविवागदसाओ-इस पद की व्याख्या वृत्तिकार अभयदेव सूरि ने इस प्रकार की है कर्मणः-अशुभस्य विपाकः-फलं कर्मविपाकः, तत्प्रतिपादका दशाध्ययनात्मकत्वाद् दशाः कर्मविपाकदशाः, विपाकश्रु ताख्यस्यैकादशाङ्गस्य प्रथमश्रु तस्कन्धः, द्वितीयश्रु तस्कन्धोऽप्यस्य दशाध्ययनात्मक एव, नचासाविहाभिमतः उत्तरत्र विवरियमाणत्वादितिअर्थात् अशुभ कर्मफल प्रतिपादन करने वाले दश अध्ययनों का नाम कर्मविपाकदशा है । यह विपाकश्रुत का प्रथमश्रुतस्कन्ध है । विपाकश्रुत के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के भी दश अध्ययन हैं, उन का आगे विवरण होने से यहां उल्लेख नहीं किया जाता । श्री स्थानांगसूत्र में दश अध्ययनों के जो नाम लिखे हैं, वे निम्नक्ति हैं ____कम्मविवागदसाणं दस अज्झयणा प० तं०-१-मियापुत्ते, २--गोचासे, ३-अंडे ४--सगडे इ यावरे । ५--माहणे ६--णंदिसणे य, ७--सोरिए य ८ -उदंबरे। :--सहसुद्धाहे, आमलते, १०--कुमारे लेच्छइ ति य । (स्थानांग सू० ७५५) विपाकश्रुत में इन नामों के स्थान में निम्नोक्त नाम दिये गए हैं १-मियापुत्ते य, २-उझियए, ६-अभग्ग, ४-सगड़े, ५-बहस्सई, ६--नन्दी। ७--उम्बर, ८--सोरियदरे य, ह--देवदचा य १०--अञ्जू य ॥१॥ स्थानाङ्गसूत्र में जिन नामों का निर्देश किया गया है उन नामों में से इन में आंशिक भिन्नता है। इस का कारण यह है कि श्रीस्थानाङ्गसूत्र में कथानायकों का नाम ही कहीं पूर्वजन्म की अपेक्षा से रक्खा गया है और कहीं व्यवसाय की दृष्टि से । जैसे- गोत्रास और उज्झितक । उज्झितक पूर्वजन्म में गोत्रास के नाम से विख्यात था । इसी प्रकार अन्य नामों की भिन्नता के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए । यह भेद बहुत साधारण है अतएव उपेक्षणीय है। मांगलिक विचार प्रश्न प्रत्येक ग्रन्थ के प्रारम्भ में मङ्गलाचरण करना आवश्यक होता है; यह बात सभी आर्य प्रवृत्तियों तथा विद्वानों से सम्मत है । मङ्गलाचरण भले ही किसी इष्ट का हो, परन्तु उस का आराधन अवश्य होना चाहिये । सभी प्राचीन लेखक अपने २ ग्रन्थ में मंगलाचरण का आश्रयण करते आए है। मंगलाचरण इतना उपयोगी तथा आवश्यक होने पर भी विपाकश्रुत में नहीं किया गया, यह क्यों ? अर्थात् इसका क्या कारण है ? . उत्तर-मंगलाचरण की उपयोगिता को किसी तरह भी अस्वीकृत नहीं किया जा सकता, परन्तु यह बात न भूलनी चाहिए कि सभी शास्त्रों के मूलप्रणेता श्रीअरिहन्त भगवान् हैं । ये आगम उनकी रचना होने से स्वयं ही *मंगलरूप हैं । मंगलाचरण इष्टदेव की आराधना के लिये किया जाता ___*मंगलम् इष्टदेवतानमस्कारादिरूपम् , अस्य च प्रणेता सर्वज्ञस्तस्य चापरनमस्कार्याभावान्मंगलकरणे प्रयोजनाभावाच्च न मंगलविधानम् । गणाधराणामपि तीर्थकृदक्तानुवादित्वान्मंगलाकरणम् ।अस्मदाद्यपेक्षया तु सर्वमेव शास्त्रं मंगलम्। (सूत्रकृतांगसूत्रे शीलाङ्काचार्याः) For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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