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________________ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रथम अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित। पदार्थ-एवं खलु -इस प्रकार निश्चय ही । गातमा !- हे गौतम ! । तेणं कालेणं तेणं समएणंउस काल और उस समय । इहेव-इसी । जंबुद्दीवे दीवे-जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत । भारहेभारत । वासे. वर्ष में। हथिणाउरे-हस्तिनापुर । णाम-नाम का। णगरे-नगर । होत्या-था, जो कि । रिद्ध०-ऋद्ध-भवनादि के आधिक्य से युक्त, स्तिमित-स्वचक और परचक्र के भय से मुक्त और समृद्ध -धनधान्यादि से परिपूर्ण था । तत्थ णं-उस हथिणाउरे-हस्तिनापुर । णगरे-नगर में । सुमुहे-सुमुख । णाम-नाम का । गाहावती- गाथापति-गृहस्थ । परिवसति-रहता था, जोकि । अड्ढे०--बड़ा धनी यावत् अपने नगर में बड़ा प्रतिष्ठित माना जाता था। तेणं कालेणं तेण समएणं-उस काल और उस समय । धम्मघोसा - धर्मघोष । णाम-नाम के । थेरा-स्थविर । जातिसंपन्ना-जातिसम्पन्न-श्रष्ठ मातृपक्ष वाले । जात्र- यावत् । पंचहिं-पांच । समयसतेहि-सौ श्रमणों के । सद्धिं - साथ । संपरिचुडा-सम्परिवृत । पुव्वाणुपुग्विं-पूर्वानुपूर्वी-क्रमशः । चरमाणा-विचरते हुए। गामाणगामं - प्रामानुग्राम -एक ग्राम से दूसरे ग्राम में। दूइज्जमाणा-गमन करते हुए । जेणेव-जहां । हत्थिणाउरे-हस्तिनापुर । गरे - नगर था, और । जेणेव-जहां पर । सहसंबवणे - सहसाम्रवन नामक । उज्जाणे-उद्यान था । तेणेव-वहां पर । उवागच्छंति-आते हैं । उवागच्छिता-आकर । अहापडि. रूवं-यथाप्रतिरूप-अनगारधर्म के अनुकूल । उग्गह-अवग्रह-आश्रय-बस्ती को। उग्गिरिहत्ता - ग्रहण कर । संजमेणं-संयम, और । तवसा - तप के द्वारा। अप्पाणं-श्रात्मा को। भावेमाणे -भावित करते हुए। विहरति-विचरण करते हैं । तेणं कालेणं तेणं समएणं-उस काल और उस समय में। धम्मघोसाणंधर्मत्रोष । राणं-स्यविरों के । अन्तवासी-शिष्य । सुश्त-सुदत्त । नाम-नामक । अणगारेअनगार । उराले-उदार-प्रधान । जात्र-यावत् । तेउलेस्से-तेजोलेश्या को संक्षिप्त किये हुए । मासमासेणं-एक २ मास का । खममाणे-क्षमण-तप करते हुए अर्थात् एक मास के उपवास के बाद पारणा करने वाले । विहरति-विहरण कर रहे थे । तते णं-तदनन्तर । से-वह । सुदत्त -सुदत्त । अणगारे -अनगार । मासक बमणपारणगंसि -मासक्षमण के पारणे में । पढमपोरिसीए-प्रथमपौरुषी में। सज्झायं-स्वाध्याय । करेति-करते हैं। जहा-यथा । गोयमसामी-गौतमस्वामी । तहेव-तयैव । धम्मघोसे-धघोष । थेरे - स्थविर को । श्रापुच्छति-पूछते हैं । जाव-यावत् भिक्षार्थ । अडमाणेभ्रमण करते हुए उन्होंने । सुमुहस्स -सुमुख । गाहावतिस्स-गाथापति के । गिह-घर में । अणुपविटेप्रवेश किया अर्थात् भ्रमण करते हुए सुमुख गाथापति के घर में प्रविष्ट हुए। मूलार्थ-इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! उस काल और उस समय इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में हस्तिनापुर नाम का एक ऋद्ध, स्तिमित तथा समृद्ध नगर था । वहाँ समुख नाम का एक धनाढ्य गाथापति रहता था जोकि यावत् नगर का मुखिया माना जाता था। उस काल और उस समय जातिसम्पन्न यावत् पांच सौ श्रमणों से परिवृत हुये धर्मघोष नामक स्थविर क्रमपूर्वक चलते हुए और ग्रामानुग्राम विचरते हुए हस्तिनापुर नगर के सहस्राम्रवन नामक उद्यान में पधारे । वहां यथाप्रतिरूप अवग्रह-बस्ती को ग्रहण कर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विहरण करने लगे। - उस काल और उस समय श्री धर्मघोष स्थविर के अन्तेवासी-शिष्य उदार यावत् तेजोलेश्या को संक्षिप्त किये हुए सुदत्त नाम के अनगार मासिक क्षमण-तप करते हुए विहरण कर रहे थे, साधुजीवन बिता रहे थे। तदनन्तर सुदत्त अनगार मासक्षमण के पारणे में पहले पहर में स्वाध्याय For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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