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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित । [५७७ में त्रस जीवों की हिंसा असम्भव नहीं है । इस लिये गृहस्थ को संकल्पी हिंसा के त्याग का नियम होता है, अन्य का नहीं । इस के अतिरिक्त अहिंसाणवत की रक्षा के लिये १-बन्ध, २-वध, ३-छविच्छेद, ४-अतिभार और ५-भक्तपानव्यवच्छेद इन पांच कार्यों के त्याग करने का ध्यान रखना भी अत्यावश्यक है । बन्ध आदि पदों का अर्थ निम्नोक्त है १-बन्ध-रस्सी आदि से बांधना बन्ध कहलाता है । बन्ध दो प्रकार का होता है-द्विपदबन्ध और चतुष्पदबन्ध । मनुष्य आदि को बांधना द्विपदवन्ध और गाय आदि पशुओं को बांधना चतुष्पदबन्ध कहा जाता है । अथवा -बन्ध अर्थवन्ध और अनर्थबन्ध, इन विकल्पों से दो प्रकार का होता है। किसी अर्थ - प्रयोजन के लिये बांधना अर्थबन्ध है तथा बिना प्रयोजन के ही किसी को बांधना अनर्थबन्ध कहलाता है : अर्थबन्ध के भी १-सापेक्षबन्ध, और २ -निरपेक्षबन्ध, ऐसे दो भेद होते हैं । किसी प्राणी को कोमल रस्सी आदि से ऐसा बांधना कि अग्नि लगने आदि का भय होने पर शीघ्र ही सरलता से छोड़ा जा सके, उसे सापेक्षवन्ध कहते हैं । तात्यय यह है कि पढ़ाई आदि के लिये प्राज्ञा न मानने वाले बालकों, चोर आदि अपराधियों को केवल शिक्षा के लिये बांधना तथा पागल को, गाय आदि पशुओं को एवं मनुष्यादि को अग्नि आदि के भय से उन के संरक्षणार्थ दान्धना सापेक्षबंध कहलाता है, जब कि मनुष्य पशु श्रादि को निर्दयता के साथ बांधना निरपेक्षबंध कहा जाता है। अनर्थ वन्व तथा निरपेक्षवन्ध श्रावकों के लिये त्याज्य एवं हेय होता है। २-वध-कोड़ा आदि से मारना व कहलाता है । वध के भी बन्ध की भान्ति द्विपदवध - मनुष्य आदि को मारना, तथा चतुष्पदवध -पशुओं को मारना, अथवा-अर्थवध - प्रयोजन से मारना और अनथवध-बिना प्रयोजन ही मारना, ऐसे दो भेद होते हैं । अनर्थवध श्रावक के लिए त्याज्य है । अर्थवध के सापेक्षवध और निरपेक्षवध ऐसे दो भेद हैं । अवसर पड़ने पर प्राणों की रक्षा का ध्यान रखते हुए मर्म स्थानों में चोट न पहुँचा कर सापेक्ष ताडन सापेक्षवध और निर्दयता के साथ ताडन करना निरपेक्षवध कहलाता है।.श्रावक को निरपेक्षवध नहीं करना चाहिये । ३-छविच्छेद -शस्त्र आदि से प्राणी के अवयवों-अंगों का काटना छविच्छेद कहा जाता है। छविच्छेद के द्विपदधविच्छेद - मनुष्यादि के अवयवों को काटना, तथा चतुष्पदछविच्छेद-पशुओं के अवयवों को काटना, अथवा- अर्थछविच्छेद-प्रयोजन से अवयवों को काटना तथा अनर्थछविच्छेद-बिना प्रयोजन ही अवयवों को काटना, ऐसे दो भेद होते हैं । अनथछविच्छेद श्रावक के लिये त्याज्य है। अर्थछविच्छेदसापेक्षछविच्छेद और निरपेक्ष विच्छेद इन भेदों से दो प्रकार का होता है। कान, नाक, हाथ, पैर आदि अंगों को निदयतापूर्वक काटना निरपेक्षछविच्छेद कहलाता है जोकि श्रावक के लिये निषिद्ध है तथा किसी प्राणी की रक्षा के लिये घाव या फोड़े आदि का जो चीरना तथा काटना है वह सापेक्षछविच्छेद कहा जाता है, इस का श्रावक के लिये निषेध नहीं है। ४-अतिभार -शक्ति से अधिक भार लादने का नाम अतिभार है । मनुष्य, स्त्री, बैल, घोड़े आदि पर अधिक भार लादना अथवा असमय में लड़कों, लड़कियों का विवाह करना, अथवा प्रजा के हित का ध्यान न रख कर कानून का बनाना अतिभार कहा जाता है । अथवा-बन्ध आदि की भान्ति अतिभार के द्विपदअतिभार-मनुष्यादि पर प्रमाण से अधिक भार लादना, तथा चतुष्पदअतिभार - पशुओं पर प्रमाण से अधिक भार लादना, अथवा-अर्थअतिभार-प्रयोजन से अतिभार लादना तथा अनर्थप्रतिभार-बिना प्रयोजन ही अतिभार लादना, ऐसे दो भेद होते हैं । अनर्थअतिभार श्रावक के लिये त्याज्य होता है । अर्थअतिभार सापेक्षअतिभार तथा निरपेक्षअतिभार-इन भेदों से दो प्रकार का होता है। गाड़े आदि में जुते हुए बैलों For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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