SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 643
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय । हिन्दी भाषा टीका सहित । ................. के चरणों में दीक्षित हो कर तथा संयम का अाराधन कर के देवलोक में उत्पन्न हुए। आज कल श्राप देवलोक में विराजमान हैं वहां से च्यव कर आप ११ भव करते हुए अन्त में मुक्ति को प्राप्त कर लेंगे। प्रस्तुत सुखविपाकीय प्रथम अध्ययन में श्राप श्री का ही जीवन प्रस्तावित हुआ है। पूर्व के भव में आप ने श्री सुदत्त तपस्विराज को आहार दे कर संसार परिमित किया था और मनुष्यायु का बन्ध किया था। २- भद्रनन्दी-ये ऋषभपुर नामक नगर में उत्पन्न हुए थे। इन के पूज्य पिता का नाम महाराज धनावह तथा माता का नाम महारानी सरस्वती था। पूर्व के भव में श्री युगबाहु तीर्थकर को आहारदान दे कर इन्हों ने अपना भविष्य उन्नत बनाया था। वर्तमान में पतितपावन महावीर स्वामी के नेतृत्व में इन के जीवन का निर्माण हुआ । संयमाराधन से प्राप देवलोक में गये। वहां से च्यव कर ११ भव करते हुए निर्वाणपद प्राप्त करेंगे। ३ - सुजात -इन्हों ने वीरपुर नामक नगर को जन्म लेकर पावन किया था। पिता का नाम वीरकृष्ण मित्र और माता का नाम श्रीदेवी या । जिन में राजकुमारी बालश्री मुख्य थी, ऐसी ५०० राजकन्याओं के साथ आप का पाणिग्रहण हुआ था । पूर्व के भव में आप इषुकार नामक नगर में ऋषभदत्त गाथापति के रूप में थे और वहां आप ने तपस्विराज मुनिपुङ्गव श्री पुष्पदन्त जी जैसे सुपात्र को भावनापूर्वक आहारदान दे कर संसारभ्रमण परिमित और मनुष्यायु का बन्ध किया था। वर्तमान भव में पतितपावन वीर प्रभु के चरणों में दीक्षित हुए और देवलोक में उत्पन्न हुए, वहां से च्यव कर ११ भव करते हुए अन्त में मुक्ति में विराजमान हो जाएंगे। ४-सुवासव-आप ने विजयपुर नगर में जन्म लिया था। महाराज वासवदत्त आप के पूज्य पिता थे । महारानी कृष्णादेवी आप की मातेश्वरी थी। आप का जिन ५०० राजकुमारियों के साथ पाणिग्रहण हुआ था, उन में भद्रादेवी प्रधान थी। पूर्वभव में आप ने महाराज धनपाल के रूप में तपस्विराज श्री वैश्रमणदत्त जी महाराज का पारणा कराया था । वर्तमान भव में भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में दीक्षित हो संयम के अाराधन से सिद्ध पद् उपलब्ध किया था। ५-जिनदास-आप सौगन्धिकनरेश महाराज अप्रतिहत के पौत्र थे। पिता का नाम श्री महाचंद्र तथा माता का नाम श्री अरहदत्ता देवी था। महाराज मेघरथ के भव में आप ने श्री सुधर्मा स्वामी प्रतिलाभित किए थे। वर्तमान भव में भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में दीक्षित हुए और संयम के सम्यक् आराधन से आप ने निर्वाणपद प्राप्त किया था । ६-धनपति-आप कनकपुरनरेश महाराज प्रियचन्द के पौत्र थे । आप की पूज्य दादी का नाम श्री सुभद्रादेवी था । आप के पिता का नाम श्री वैश्रमणदत्त था। माता श्री देवी थी । पूर्वभव में आप ने तपस्थिराज श्री संभूतविजय मुनिराज को भावनापुरस्सर दान दिया था। वर्तमान भव में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षित हो निर्वाणपद प्राप्त किया था। ७-महाबल - महापुरनरेश महाराज बल के श्राप पुत्र थे । अाप की माता का नाम श्री सुभद्रादेवी था । रक्तवतीप्रमुख ५०० राजकुमारियों के साथ आप का विवाह सम्पन्न हुआ था। नागदत्त गाथापति के भव में आप ने तपस्विराज श्री इन्द्रदत्त मुनिवर्य का पारणा करा कर संसार को परिमित किया था। वर्तमान भव में भगवान् महावीर स्वामी के पवित्र चरणों में साधु बन कर उस के यथाविधि आराधन से मुक्ति प्राप्त की थी। ..८-भद्रनन्दी-आप के पूज्य पिता का नाम सुघोषनरेश महाराज अर्जुन था और मातेश्वरी श्री दत्तवती जी थीं। आप का ५०० राजकुमारियों के साथ विवाह सम्पन्न हुआ था, उन में श्रीदेवी मुख्य थी। श्री धर्मघोष के भव में आप ने श्री धर्मसिंह मुनिराज को निर्दोष एवं शुद्ध भावों के साथ श्राहार पानी देकर, पारणा करा कर अपने संसारभ्रमण को परिमित किया था। वर्तमान भव में भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में दीक्षित हो For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy