SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 615
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दशम अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [५२७ पासिता चिन्ता । तहेव जाव एवं वयासा सा गं भंते । इत्थिया पुव्वभवे का आसि ? वामरणं । - Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir i , 1 पदार्थ - दस मस्स - दशम अध्ययन के । उकखेवो - उत्क्षेप प्रस्तावना पूर्व की भान्ति जान लेना चाहिये । एवं खनु - इस प्रकार निश्चय ही । जंबू ! - हे जम्बू ! | तेणं काले २ - उस काल और उस समय में । वद्धमाणपुरे - वधमानपुर । णामं - नामक । गगरे - - नगर होत्था - था। विजयवाड्ढमाणे - विजयवर्धमान नामक | उज्जाणे – उद्यान था, वहां माणिभद्दे - माणिभद्र जक्खे - यक्ष का स्थान था । विजय मित्त - विजय मित्र । राधा - राजा था। तत्थ णं - वहां पर । धगदेव - धन देव । गामं-नाम का । सत्थवाहे-यात्री व्यापारियों का मुखिया अथवा संघनायक । होत्या-रहता था, जोकि । अड्ढे ०. १०- बड़ा धनी तथा अपनी जाति में महान् प्रतिष्ठा प्राप्त किए हुए था, उस की। वियं भारिया-प्रियंगू नाम की भार्या थी । अंजू - अंजू नामक | दारिया -दारिका - बालिका । जाब- यावत् । सरीरा - उत्कृष्ट उत्तम शरीर वाली थी । सनोसर - भगवान् महावीर स्वामी पधारे। परिसा परिषद् । जाव - यावत् । गो-चली गई । ते काले २ - उस काल और उस समय । जेट्ठे - ज्येष्ठ शिष्य | जाव - यावत् । श्रमाणे - भ्रमण करते हुए ' विजय मित्तस्स - विजय मित्र । ररागो - राजा के । गिइस्स- -घरको । असोगवणियाए - अशोकवनिकाअशोक वृक्ष प्रधान बनोची के । अदूरसामंतेण - समीप से । वीइवयमाणे - - गमन करते हुए । पासतिदेखते हैं । एगं - एक । इथियं स्त्री को, जो कि । सुखं सूखी हुई। भुक्खं बुभुक्षित । निम्मंसं - मां से रहित - जिस के शरीर का मांस समाप्तप्रायः हो रहा है । किडिकिडिभूयं किटिकिटि शब्द से युक्त - अर्थात् जिसकी शरीरगत अस्थिएं किटि २ शब्द कर रही हैं । अचम्मावराद्धं - जिस का चर्म अस्थियों से चिपटा हुआ है अर्थात् अस्थिचर्मावशेष । जीतसा डगलियत्थं - और जो नीली साडी पहने हुए है, ऐसी उस । कट्टाई – कष्टात्मक - कष्टप्रद कनुणाई - करुणोत्पादक | वीसराई - दीनतापूर्ण वचन कूवमाणि - बोलती हुई को । पासिता देखकर । विन्ता- विचार उत्पन्न हुआ। तदेव - तथैव - उसी प्रकार । जान - यावत् वा पेसा कर । एवं वयासी - इस प्रकार कहने लगे। भंते ! - हे भदंत ! । सा गं - वह । इत्थिया - स्त्री । पुत्रवभवे - पूर्व भव में । का आसि १ – कोन थी १, इस के उतर में भगवान् महावीर स्वामी का वागरणं प्रतिपादन करना । मूलार्थ - - दशम अध्ययन के उत्क्षेप प्रस्तावना की कल्पना पूर्व की भान्ति कर लेनी चाहिये । जम्बू ! उस काल तथा उस समय में वर्द्धमानपुर नाम का एक नगर था। वहां विजयवर्द्धमान नामक उहान था । उस में माणिभद्र नामक यक्ष का स्थान था। विजयमित्र वहां के राजा थे। वतं धनदेव नाम का साया रहता था जोकि बहुत धनी और नगरप्रतिष्ठित था, उस की प्रियंगू नाम को भार्या थी तथा उसकी सर्वोत्कृष्ट शरीर से युक्त अज्जू नाम की एक बालिका थी । 1 उस समय विजयवर्द्धमान उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे, यावत् परिषद् धर्मदेशना सुन कर वापिस चली गई। उस समय भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य यावत् भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए विजयमित्र राजा के घर की अशोकवनिका के समीप जाते हुए एक सूखी हुई, बुभूक्षित निर्मान, किटिकटि शब्द करती हुई अस्थचर्मावनद्ध, नीली साड़ी पहने हुए, कष्टमय, करुणाजनक तथा दोनतापूर्ण वचन बोलते हुई एक स्त्री को देखते हैं, देखकर विचार करते हैं। शेष पूर्ववत् यावत् भगवान् से आकर इस प्रकार बोले - भगवन ! यह स्त्री पूर्वभव में कौन थी । इस के उत्तर में भगवान् प्रतिपादन करने लगे । For Private And Personal 1
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy