SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 599
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवम अध्याय ] हिन्दी भाषा टोका सहित प्रतिदिन माता के पास जाकर उसके चरणों में प्रणाम कर तदनन्तर शतपाक और सहस्रपाक तैलों की मलिश से अस्थि, मांस त्वचा और रोमों को सुग्वकारी ऐसी चार प्रकार की संवाहनक्रिया से शरीर का सुध पहुंचाते । तदनन्तर गंधवर्तक बटने से शरीर का उद्वर्तन कर उष्ण, शीत और सुगन्धित जलों से स्नान कराते, उसके बाद बिपुल अशनादि का भोजन कराते भोजन कराने के बाद जब वह श्रीदेवी सुग्वाम्मन पर विराजमान हो जाती तब पीछे से वे स्नान करते और भाजन करते तदनन्तर मनुष्यसम्बन्धी उदार भोगों का उपभोग करते हुए समय व्यतीत करने लगे। टीका प्रस्तुत सूत्र में अन्य बातों के अतिरिक्त भातृसेवा का जो आदर्श उपस्थित किया गया है, वह अधिक शिक्षाप्रद है। पिता के स्वर्गवास के अनन्तर राज्यसिंहासन पर आरूढ़ होने के बाद पुष्यनन्दी ने अपने आचरण से मातृसेवा का जो आदर्श प्रस्तुत किया है, वह शाब्दिक रूप से मातृभक्त बनने या कहलान वाले पुत्रों के लिये विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है। घर में अनेक दास दासियों के रहते हुए भी अपने हाथ से माता की सेवा करना तथा उन को सप्रेम भोजनादि करा देने के बाद स्वयं भोजन करना आदि जितनी भी बातों का उल्लेख प्रस्तुत सूत्र में किया गया है, उस पर से पुष्यनन्दी को आदर्श मातृभक्त कहना वा मानना उस के सर्वथा अनुरूप प्रतीत होता है । सूत्रगत -"सिरीर देवीर मायाभत्त यावि होत्था'- यह पाठ भी इसी बात का समर्थन करता है। -वत्तीसइबद्ध नाडरहिं जाव विहरति - यहां पठित जाव-यावत् पद से - णाणाविहवरतरुणीसंपउत्तेहिं उठवनच्चिज्जमाणे २ उवगिज्जमाणे २ उवलालिज्जमाणे २ पाउसा-वासारत्तसरद - हेमन्त वसन्त -- गिम्ह --पज्जन्ते छप्पि उर्दु जहाविभवेण माणमाणे २ कालं गालेमाणे २ इट्टे सफरिसरसरूवगन्धे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे-इन पदों का ग्रहण करना चाहिये । इन का अर्थ निम्नोक्त है परम सुन्दरी युवतियों के साथ बत्तीस प्रकार के नाटकों से उपनृत्यमान -जो नृत्य कर रहा है, उपगीय. मान-प्रशं सत अर्थात् जिस का गुणग्राम हो रहा है, उपलाल्यमान-उपलालित (क्रीडित) वह पष्यनन्दी कुमार प्रावृट् - वर्षा ऋतु अर्थात् चौमापा. वर्षोंरात्र --श्रावण और भादों का महीना. शरद् - आसोज और कार्तिक का महीना हेमन्त - मार्गशीर्ष तथा पोष का महीना बसत चैत्र और वैशाख मास का समय और ग्रीष्म - ज्येष्ठ और आषाढ मास का समय, इन छः ऋतु प्रो का यथाविभव अपने ऐश्वयं के अनुसार अनुभव करता हुआ, आनन्द उठाता हश्रा और समय व्यतीत करता हश्रा एव पांच प्रकार के इष्ट रूप, रस, गन्ध, स्पर्श विषयक मनुष्यसम्बन्धी कामभोगों का उपभोग करता हुआ जीवन व्यतीत करने लगा। -नोहा गजाव तया.. यहां का नीहरण शब्द अरथी निकालने के अर्थ में प्रयुक्त हुया है और यहतर ण से पूलणंदिकुमारे बहुहि नाईल' -तनवर -माडम्बिय - कोडुम्बिय . इन्भ-संहि- सत्यवाहप्प भितीसिद्धि संपबुिडे रोय गणे कन्दमाणे विलवमाणे वेसमणस्स रगणो महया इड्ढीसक्कारसमुद पणं - इन पदों का परिचायक है। तथा -- जाव - यावत पद से - करेति २ बहुइं लोइयाई मर्याकच्चाई क रेति,तए गां ते वहये राईसर-तलवर - माडम्विय -कोडुम्बिय इभ-सेट्ठि-सत्यवाहा पूसनन्दिकुमार महया गयाभिसे रणं अभिसिं चन्ति । तए -इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को इष्ट है । अर्थात् महा. राज वेश्रमण की मृत्यु के अनन्तर बहुत से राजा, ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, सेठ और सार्थवाह आदि से घिरा हुआ पुष्यनन्दी कुमार रुदन, क्रन्दन और विलाप करता हुआ महान् ऋद्धि और सत्कार (१) ईश्वर, तलवर-आदि शब्दों का अर्थ पृष्ठ १६५ पर लिखा जा चुका है। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy