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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४७२] श्री विपाक सूत्र [नवम अध्याय भारतवर्ष ( जम्बूद्वीप का एक विस्तृत तथा विशाल प्रांत ) में सुप्रतिष्ठ नाम का एक सुप्रसिद्ध नगर था, जो कि समृद्धिशाली तथा धन धान्यादि सामग्री के भंडारों का केन्द्र बना हुआ था । उस में महाराज महासेन राज्य किया करते थे । महाराज महासेन के रणवास में धारिणीप्रमुख एक हजार रानिय थीं, अर्थात् उन का एक हज़ार राजकुमारियों के साथ विवाह हुअा था । उन सब में प्रधान रानी महारानी धारिणी देवी थी, जो कि पतिव्रता, सुशीला और परमसुन्दरी थी । महारानी धारिणी की कुक्षि से एक बालक ने जन्म लिया था । बालक का नाम सिंहसेन था । राजकुमार सिंह सेन ता पिता की तरह सुन्दर, सुशोल और विनीत था. उस का शरीर निर्दोष और संगठित अंगप्रत्यंगों से युक्त था । वह माता पिता का आज्ञाकारी होने के अतिरिक्त राज्यसम्बन्धी व्यवहार में भी निपुण था । यही कारण था कि महाराज महासेन ने उसे छोटी अवस्था में ही युवराज पद से अलंकृत करके उसकी योग्यता को सम्मानित करने का इलाघनीय कार्य किया था । इस प्रकार यवराज सिंहसेन अपने अधिकार का पूरा २ ध्यान रखता हुअा अानन्दपूर्वक समय व्यत मय व्यतीत करने लगा। ____ जब राजकुमार सिंहसेन ने किशोरावस्था से निकल कर युवावस्था में पदार्पण किया तो महाराज महासेन ने युवराज को विवाह के योग्य जान कर उस के लिये पांच सौ नितान्त सुन्दर और विशालकाय 'राजभवनों का तथा उन के मध्य में एक परमसुन्दर भवन का निर्माण कराया. तत्पशात यवराज का पांच सौ सुन्दर राजकन्याओं के साथ एक ही दिन में विवाह कर दिया और पांच सौ दहेज दे डाले । उन राजकन्याओं में प्रधान - मुख्य जो राजकन्या थी, उस का नाम श्यामा था । तात्पर्य यह है कि युवराज सिंहसेन की मुख्य रानी का नाम श्यामा देवी थी, तथा इस विवाहोत्सव में महाराज महासेन ने समस्त पुत्रवधुओं के लिये हिरण्यकोटि आदि पांच सौ वस्तुएं दहेज के रूप में दी । तदनन्तर युवराज सिंहसेन अपनी श्यामा देवी प्रमुख ५०० रानियों के साथ उन महलों में सांसारिक सुखों का यथेच्छ उपभोग करता हुअा अानन्दपूर्वक रहने लगा ।। -रायवरकन्नगसयाणं-इस पद से सूचित होता है कि वे राजकन्यायें साधारण नहीं थीं किन्तु प्रतिष्ठित राजघरानों की थीं । इस के साथ २ यह भी सूचित होता है कि महाराज महासेन का सम्बन्ध बड़े २ प्रतिष्ठित राजाओं के साथ था । पांच सौ कन्याओं के साथ जो विवाह का वर्णन किया है, इस से दो बातें प्रमाणित होती हैं जो कि निम्नोक्त हैं (३) प्राचीन समय में प्रायः राजवंशों में बहुविवाह की प्रथा पूरे यौवन पर थी, इस को अनुचित नहीं समझा जाता था। (२) महाराज महासेन का इतना महान् प्रभाव था कि आस पास के सभी मांडलीक राजा उन को अपनी कन्या देने में अपना गौरव समझते थे । इस व्यवहार से वे महाराज महासेन की कृपा (१) इतने अधिक महलों के निर्माण से दो तीन बातों का बोध होता है - प्रथम तो यह कि माता पिता का पुत्रस्नेह कितना प्रबल होता है ?, पुत्र के आराम के लिये माता पिता कितना परिश्रम तथा व्यय करते हैं १. दूसरी यह कि महाराज महा पेन कोई साधारण नृपति नहीं थे, किन्तु एक बड़े समृद्धिशाली तथा तेजस्यो राजा थे । तोसरी यह कि-हमारा भारतदेश प्राचीन समय में समुन्नत, समृद्धिपूर्ण तथा सम्पत्तिशाली था। प्रायः उसके प्रासादों में स्वर्ण और मणिरत्नों की ही बहुलता रहती थी । सारांश यह है कि पुराने जमाने में हमारे इस देश के विभवसम्पन्न होने के अनेकानेक उदाहरण मिलते हैं । यह देश आज की भांति विभवहीन नहीं था। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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