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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन हिन्दीभाषाटीकासहित (४१) परम्परा के प्रारम्भ का निर्णय सर्वथा अशक्य होने से वह परम्परा अनादि ही रहती है, परन्तु आज उस के सन्यासी हो जाने पर उस परम्परा का अन्त हो जाता है । इसी तरह जीव और कर्म के सम्बन्ध की अनादि परम्परा का विच्छेद भी शास्त्रविहित क्रियानुष्ठान के आचरण से हो जाता है, अन्यथा कर्मसम्बन्ध के विच्छेदार्थ किया जाने वाला सदनुष्ठानमूलक सभी पुरुषार्थ निष्फल हो जाएगा। इस लिये आत्मा के साथ कर्म का सम्बन्ध अनादि होने पर भी अन्त वाला है । ऐसी स्थिति में जीव और कर्मों के सम्बन्ध का कभी विच्छेद नहीं होगा ? यह प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता । यदि संक्षेप से कहें तो आत्मा और कर्म दोनों का संयोग प्रवाह से अनादि सान्त है, परन्तु यह अनादित्व भी निखिल कमसापेक्ष्य है, किसी एक कर्म की अपेक्षा वह सादि अथच सान्त है। इसलिये आत्मकर्मसंयोग अनादि सान्त भी है और सादि सान भी। मोक्ष को सभी दार्शनिकों ने सादि अनन माना है । अमुक आत्मा का अमुक समय कर्मबन्धनों से आत्यन्तिक छुटकारा प्राप्त करना मोक्ष की आदि है और कर्मविच्छेद के अनन्तर फिर कभी उस आत्मा से कर्मों का सम्बन्ध नहीं होगा, यही मोक्ष की अनन्तता है। किसी भी भारतीय दर्शन ने मोक्षगत आत्मा का पुनरागमन स्वीकार नहीं किया । न स पुनरावर्तते, न स पुनरावर्तते-। (छां० उप० प्र० ८, खं० १५) अर्थात् जीव मुक्ति से फिर नहीं लौटता । अनावृत्तिशब्दात्- अर्थात् मुक्ति से जीव लौटता नहीं (वेदान्तसूत्र) । तदत्यन्तविमोक्षोऽपवर्गः । तदुच्छित्तिरेव पुरुषार्थः (सांख्यदर्शन) । न मुक्तस्य बन्धयोगोपि, अपुरुषार्थत्वभन्यथा, वीतरागजन्मादर्शनात् (न्यायदर्शन)। इत्यादि जैनेतर दर्शनों के भी शतशः प्रमाण इस की पुष्टि में उपलब्ध होते हैं । इसके अतिरिक्त उक्त सिद्धान्त (मोक्ष से पुनरावर्तन मानने का सिद्धान्त) युक्तियुक्त भी प्रतीत नहीं होता। कर्मविच्छेद कहो, अज्ञाननिवृत्ति कहो या अविद्यानाश कहो, इन सब का तात्पर्य लगभग समान ही है । ज्ञान से अज्ञान की निवृत्ति या अविद्या का नाश होता है । जिन कारणों से कमेबन्ध या अज्ञान अथवा अविद्या का नाश होता है, वे मोक्ष में बराबर विद्यमान रहते हैं। दूसरे शब्दों में-जन्ममरणरूप संसार के कारणों का उस समय सर्वथा अभाव हो जाता है, उन का समूलघात हो जाता है । तब मोक्ष से वापिस लाने वाला ऐसा कौन सा कारण बाकी रह जाता है, जिस के आधार पर हम यह कह सकें या मान सकें कि मुक्त हुई आत्मा कुछ समय के बाद फिर इस संसार में आवागमन करती है ? यदि वहां पर किसी प्रकार के कारण के असद्भाव से भी आगमनरूप काये को मानें तब तो-'कारणाभावे कार्यसत्वमिति व्यतिरेकव्यभिचारः-अर्थात् कारण के अभाव में कार्य का उत्पन्न होना व्यतिरेकव्यभिचाररूप दोष आता है। इसलिये मोक्षगत आत्मा की पुनरावृत्ति का सिद्धान्त जहां अशास्त्रीय है वहां युक्तिविकल भी है। कुछ लोग कहते हैं कि मोक्ष कर्म का फल है और कर्म का फल सीमित अथच नियत होने से अन्त वाला है, इसीलिये मोक्ष भी अनित्य है, परन्तु वे लोग वास्तव में यह विचार नहीं करते कि जिसे कैवल्य-मोक्ष या निर्वाण कहा जाता है, वह कर्म का फल नहीं किन्तु कर्मों के आत्यन्तिक विनाश से निष्पन्न होने वाली आत्मा की स्वाभाविक-स्वरूपस्थिति मात्र है, जिस की उपलब्धि ही कर्मों के For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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