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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्री विपाक सूत्र - [ अष्टम अध्याय ४४६] दीर्घरूपेण खण्डितानि, ह्रस्वखण्डितानि --हस्त्ररूपेण खण्डितानि - अर्थात् वर्तुल - गोलाकार वाले खण्डित पदार्थ वृत्तखण्डित, दोर्घ - लम्बे आकार वाले खण्डित पदार्थ दीर्घखण्डित, ह्रस्व - छोटे २ आकार वाले खण्डित पदार्थ ह्रस्व वरिडत कहलाते हैं । प्रस्तुत में ये सब पद मांस के विशेषण होने के कारण - वृत्तखण्डित मांस. दीर्घ खण्डित मांस और ह्रस्वबण्डित मांस - इस अर्थ के परिचायक है । ३- हिमपक्काणि हिमपक्वानि - अथात् हिम बर्फ का नाम है, बर्फ में पकाये गये हिमपक्व कहलाते हैं । ४ – जम्प्रघम्ममारुयपक्काणि - जन्मधर्ममारुतपक्वानि । प्रस्तुत में जन्म पक्व, धर्म - ura और मारुतपक्व ये तीन पद हो सकते हैं। जन्मपक्व शब्द स्वतः ही पके हुए के लिये प्रयुक्त होता है, अर्थात् जिस के पकाने में हिम, धूप तथा हवा आदि विशेष करण न हों, वह जन्मपत्र कहलाता धूप में पाया गया हो उसे धर्मपक्त्र कहते हैं, और जो मारुत - हवा में पकाया गया हो, वह मारुतपक्व कहलाता है, अर्थात् वाष्प - भाफ आदि द्वारा पक्व मारुतपक्व कहा जाता है ५ - कालाणि - कालानि इस पद के दो अर्थ उपलब्ध होते हैं। जैसे कि १ - जो किसी भी साधन से कृष्णवर्ण वाला बनाया गया हो. वह काल कहलाता है । २ - काल शब्द प्रस्तुत में कालपक्व इस अर्थ का बोधक है । तात्पर्य यह है कि समय के अनुसार अर्थात् शीत, ग्रीष्म, वर्षादि ऋतुओं या प्रातः, मध्याह्न आदि काल के अनुसार पके हुए को कालपक्व कहते हैं । । ६ – हेरंगाणि – इस पद के भी दो अर्थ किये जाते हैं। जैसे कि १ - जो हिंगुल - सिंगरफ़ के समान लाल वर्ण वाला किया गया है, उसे हेरंग कहते हैं । अथवा २ - मत्स्य के मांस के साथ जो पकाया गया है वह हेरंग कहलाता है । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७ - महिद्वाणि – कोषकारों के मत में महिट्ट यह देश्य – देशविशेष में बोला जाने वाला पद है, और तक्र से संस्कारित इस अर्थ का परिचायक हैं । ८ - श्रामलगरसियाणि - श्रामलकर सितानि अर्थात् जो आंवले के रस से संस्कारित हो उसे श्रामलकर सित कहते हैं । ९ - मुद्दिश्राकविदालिमरसियाणि मृडीकाकपित्थदाडिमरसितानि अर्थात् मृद्वीका - द्राक्षा के रस से संस्कारित मृद्रोकारसित, कपित्थ कैथ ( एक प्रकार का कटीला पेड़ जिस में बेर के समान तथा आकार के कसैले और खट्ट े फल लगते हैं) के फलों के रस से संस्कारित कपित्थर सित, और दाडिम - अनार के रस से संस्कारित दाडिमरसित कहा जाता है 1 १० - मच्छर सियाणि मत्स्यरसितानि, अर्थात् मत्स्य के रस से संस्कारित मत्स्यरसित कहलाता है । - ११ - तलियाणि य भज्जियाणि य सोल्लियाणि य- - तलितानि च तैलादिषु, भर्जितानि च अंगारादिषु शूल्यानि च शूलपक्वानि शूले धृत्वा अंगारादिषु पक्वानि, अर्थात् तैलादि में तले को तलत, गारादि पर भूने हुए को भर्जित तथा शूला के द्वारा अंगारादि पर पकाया गया मांस शूल्य कहलाता है । हुए तितिर जाव मयूररसप यहां पटित जाव - यावत् पद - वट्टगरसए य लावगरसए य कपोयरमए य कुक्कुडरस य - इन पदों का, तथा - बहूहिं जाव जलयर - यहां पठित जाव - यावत् पद - सराहमच्छ मंसेहि य खवल्लमच्छ मंसेहि य से लेकर पडागातिपडागमच्छमंसेहि य-यहां तक के पदों का, तथा श्रयमंसेहि य एलमंसेहि य- से लेकर – महिसमंसेहि य- यहां तक के पदों का तथा - तितरमंसेहिय वहगमं सेहि य-से ले कर - मयूरमंसेहि य- यहां तक के पदों का ग्रहण करना सूत्रकार - For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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