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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ४२२] श्री विपाक सूत्र [ सप्तम अध्याय क्षय करके सिद्धपद-मोक्ष को प्राप्त करेगा। केवलज्ञान के द्वारा समस्त पदार्थों को जानेगा, समस्त कर्मों से रहित हो जावेगा, सकलकर्मजन्य मन्नाप से विमुक्त होगा, सब दु.खों का अन्त कर डालेगा । निक्षेप-उपसंहार की कल्पना पूर्व की भान्ति कर लेनी चाहिये । ॥ सप्तम अध्ययन समाप्त ॥ टीका- परम विनीत गौतम स्वामी के अभ्यर्थनापूण प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने फरमाया कि हे गौतम ! उम्बरदत्त बालक ७२ वषपर्यन्त इस प्रकार से दुःखानुभव करेगा, अर्थात् ७२ वर्ष की कुल आयु भोगेगा और आर्तध्यान से कर्मबन्ध करता सुश्रा यहां से कालधम को प्राप्त हो कर पहली नरक में उत्पन्न होगा । वहां अनेकानेक कल्पनातीत संकट सहेगा । वहां की दुःखपूर्ण अायु को पूर्ण कर अनेक प्रकार की योनियों में जन्म मरण करता हुआ संसार में रुलेगा । इस प्रकार कर्मों की मार से पीडित होता हुआ यह उम्बरदस का जीव अन्त में पृथिवीकाया में लाखों बार जन्म लेगा, वहां से निकल कर हस्तिनापुर नगर में कुक्कुड़ की योनि में उत्पन्न होगा, परन्तु उत्पन्न होते ही गौष्ठिकों - दुराचारियों के द्वारा वध को प्राप्त हो वह फिर वहीं पर - हस्तिनापुर नगर में नगर के एक प्रतिष्टित सेठ के घर में पुत्ररूप से जन्मेगा, वहां सुखपूर्वक वृद्धि को प्राप्त करता हुआ युवावस्था में साधुओं के पवित्र सहवास को प्राप्त कर के उन के पास दीक्षित हो जायेगा। सा - धुवृत्ति में तपश्चर्या के द्वारा कमों की निर्जरा कर आत्मभावना से भावित हो कर जीवन समाप्त कर सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में देव होगा । वहां के अानन्दातिरेक से आनन्दित हो सुखमय जीवन व्यतीत करेगा तथा वहां की आयु समाप्त कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा. वहां पर शैशवावस्था से निकल युवावस्था को प्राप्त कर किसी विशिष्ट संयमो एव ज्ञानी साधु के पास दीक्षा लेकर संयम का अाराधन करेगा, तथा संयमाराधन के द्वारा कों को निर्जरा करता हुआ, कमबन्धनों को तोड़ देगा. जन्म और मरण का अन्त कर देगा तथा निर्वाण पद की प्राप्त कर सिद्ध, बुद्ध, अजर और अमर हो जाएगा। . अनगार श्री गौतम स्वामी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के प्रवचन में उम्बरदत्त के अतीत वर्तमान और अनागत जीवन को सुन कर बहुत विस्मित अथच आश्चर्य को प्राप्त होते हैं, और सोचते हैं कि यह संसार भी एक प्रकार की रंगभूमी या नाट्यशाला है । जहां पर सभी प्राणी नाना प्रकार के नाटक करते हैं । कर्मरूप सूत्रधार के वशीभूत होते हुए प्राणियों को नाना प्रकार के स्वांग धारण करके इस रंगशाला में आना पड़ता है । जीवों द्वारा नाना प्रकार को ऊंच नीच योनियों में भ्रमण करते हुए विविध प्रकार के सुखों और दुःखों की अनुभूत करना ही उन का नाट्यप्रदर्शन है । उम्बरदत्त का जीव पहले धन्वन्तरि वैद्य के नाम से विख्यात हुआ, वहां उस ने अपनी जीवनचर्या से ऐसे करकों को उपार्जित किया कि जिन के फलस्वरूप उसे छठी नरक में जाना पड़ा । वहां की असह्य वेदनाओं को भोग कर वह सेठ सागरदत्त का प्रियपुत्र बना. तथा उसने सेठानी गंगादत्ता की चिरअभिलषित कामना को पूर्ण किया, वहां उसका शैशवकाल बड़ा ही सुखमय बोता, मात . पितृस्नेह का खूब आनन्द प्राप्त किया, परन्तु युवास्था को प्राप्त करते ही इस पर दुःखों के पहाड़ टूट पड़े. माता पिता परलोक सिधार गये, घर से निकाल दिया गया, सारा शरीर रोगों से अभिभत हो गया, और भिखारी बन कर दर २ के धक्के खाने पड़े, तथा इस समय को प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होने वाली भयावह दशा के बाद का जीवन भी बहुत लम्बे समय तक अन्धकारपूर्ण ही बतलाया गया है । इस में केवल हर्षजनक इतनी ही बात है कि अन्त में हस्तिनापुर के श्रेष्ठिकुल में जन्म लेकर बोधि - लाभ के अनन्तर उसे विकास का अवसर प्राप्त होगा और आखिर में वह अपने ध्येय को प्राप्त For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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