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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२० ] श्री विपाक सूत्र -- [ सप्तम अध्याय यदि कोई यह कहे कि देवपूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा स्वर्ग की उपलब्धि होती है, तो यह उस की भ्रान्ति है, कारण यह है कि देव में ऐसा करने की शक्ति ही नहीं होती । अशक्त से शक्ति की अभ्यर्थना का कुछ अर्थ नहीं होता | धनहीन से धन की आशा नहीं की जा सकती । दूसरी बात यह है जब देव देवरूप से स्वयं मुक्ति में नहीं जा सकता और जब देव को देवलोक की स्थिति पूर्ण होने पर - आयु की समाप्ति होने पर अनिच्छा होते हुए भी भूतल पर आना पड़ता है तो वह दूसरों को मुक्ति में कैसे पहुँचा सकता है ? तथा स्वर्ग का दाता कैसे हो सकता है ? हां, यह ठीक है कि जो लोग देव को कर्मफल का निमित्त मान कर देवपूजा करने वाले पर मिथ्यात्वी का आरोप करते हैं, यह भी उचित नहीं है । पदार्थों का यथार्थबोध ही सम्यक्त्व है । सम्यक्त्व का न होना मिथ्यात्व है । देव को निमित्त मान कर पूजा करने वाले को को पूर्वोक्त बोध है । वह जानता है कि मैं यह संसारवधन का काम कर रहा हूं और इस में मुझे अध्यात्मसंबंधी कोई भी लाभ नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में उसे सम्यकत्व से शून्य कहना भ्रान्ति है । यदि ऐहिक प्रवृत्तियों में देव सहायक हो सकता है - :- मात्र यह मान कर देवों का श्राराधन करने वाले व्यक्ति मिथ्या हो जायेंगे तो तेला कर के अर्थात् लगातार तीन उपवास कर देवता का आह्वान करने वाले वासुदेव कृष्ण तथा चक्रवर्ती, तीर्थंकर आदि सभी पूर्वपुरुष मिथ्यावियों की कोटि में नहीं आजाएंगे १, और क्या यह सिद्धांत को इष्ट है ?, उत्तर स्पष्ट है नहीं । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रस्तुत सूत्र में उम्बरदत्त का जन्म उस के पिता सागरदत्त और माता गंगादत्ता का काल - धर्म को प्राप्त होना, तथा उस को घर से निकालना एवं उस के शरीर में भयंकर रोगों का उत्पन्न होना इत्यादि विषयों का वर्णन किया गया है । अब सूत्रकार गौतम स्वामा के द्वारा उम्बरदत्त के भा. वी जीवन के विषय में की गई पृच्छा का वर्णन करते हैं - मूल- " तते गं से उम्बरदत्त दारए कालमासे कालं किच्चा कहि गच्छिहिति ?, कहि उववज्जिहिति ? पदार्थ - तते गं - तदनंतर । से- वह । उंबरदत्त - उम्बरदत्त । दारए - बालक, यहां से । कालमासे - कालमास में । कालं किञ्चा - काल करके । कहिं कहां । गहिति ? - जायगा ? | कहिं - कहां पर । उववज्जिहिति ? - उत्पन्न होगा ? 1 1 मूलार्थ - तदनन्तर गौतमस्त्र मो ने भगवान् महावीर स्वामी से पूछा कि भगवन् ! यह उम्बरदत्त बालक यहां से मृत्यु के समय में काल करके कहां जाएगा? और कहां पर उत्पन्न होगा ?, टीका उम्बरदत्त की वर्तमान दशा का कारण जान लेने के बाद गौतम स्वामी को उस के भावी जन्मों के जानने को उत्कण्ठा हुई, तदनुसार वे भगवान् वीर से पूछते हैं कि भगवन् ! उम्वरदत्त का भविष्य में क्या बनेगा ? क्या वह इसी प्रकार दुःखों का अनुभव करता रहेगा अथवा उस के जीवन में कभी सुख का भी संचार होगा ?, प्रभो ! वह यहां से मर कर कहां जायगा ? और कहां उत्पन्न होगा ? गौतमस्वामी के इस प्रश्न में मानव जीवन के अनेक रहस्य छुपे हुए हैं, उस की उच्चावच परिस्थितियों का अनुभव प्राप्त हो जाता है, एवं मानव जीवन को सुपथगामी बनाने में प्रेरणा मिलती है । के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फरमाया व सूत्रकार उस का वर्णन करते हैं - इस (१) छाया - तत: स उम्वरदत्तो दारकः कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यति १, कुत्रोपपत्स्यते ?, For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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