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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पूज्यपाद, सद्गुणरत्नाकर, बालब्रह्मचारी, पुनीतचरित्र, मुनिपुङ्गव, परमतेजस्वी, परमयशस्वी, ज्योतिर्विद्, प्रवर्तकपदविभूपित, संघहितैषी, परमसंयमी, आदर्श मुनिराज, स्वनामधन्य, क्षमाश्रमण श्री १००८ श्री स्वामी शालिग्राम जी महाराज की सेवा में ससम्मान समर्पण * ४४४४४daka08 श्री ने मुझ वाल पर जो अनुपम उपकार किये हैं, उन्हें अक्षरों में व्यक्त करने को यह लेखनी असमर्थ है । संसार के समस्त धर्मों से विशिष्ट, विलक्षण 8 अथच प्रामाणिक जैनधर्म को प्राप्त करने का पुनीत अवसर यह अनुचर आप 5000000pac के ही मंगलमय अमृतोपदेशों से उपलब्ध कर सका है । अधिक क्या इस 00000 MAD द्विपद जन्तु को साधुता के पथ का पथिक बनाने का श्रेय भी आप ही को है। आप श्री ने इसे अन्तर्जगत को आलोकित करने वाले शास्त्राभ्यास जैसे दिव्य आलोक के दान देने का अनुग्रह किया है। आप श्री के उपकारों की कहां तक गणना की जाए ? वे संख्या की परिधि से बाहिर हैं। आप श्री के उपकारों से उऋण होने में यह अनुचर तनिक भी समर्थ नहीं है । आप के उन संस्मरणीय उपकारों का ही आभार मानता हुआ आप का यह चरणदास श्री विपाकश्रुत की 'आत्मज्ञानविनोदिनी" नामक यह हिन्दीभाषाटीका आप श्री की सेवा में सादर समर्पण कर रहा है । कृपया इसे स्वीकार कर दास को कृतार्थ करने का अनुग्रह करते हुए भविष्य में भी इसी भाँति जैन आगमों के अनुवाद करने की शक्ति प्रदान करें। प्रार्थी -ज्ञानमुनि For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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