SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३९४] श्री विपाक सूत्र [सप्तम अध्याय जांगुल कहते हैं । विषविघातक्रियाभिधायक जंगोलमगदतंत्रम् , तद्धि सर्पकोटलूताद्यष्टविषविनासार्थम् , विविधविषसंयोगोपशमनार्थ चेति । (E) भतविद्या - जिस शास्त्र में भूतों के निग्रह का उपाय वर्णित हो, उसे भूतविद्या कहते हैं । यह शास्त्र देव, असुर, गन्धर्व, यक्ष और राक्षस आदि देवों के द्वारा किये गये उपद्रवों को शान्ति - कर्म और बलिप्रदानादि से उपशान्त करने में मार्गदर्शक होता है । भूतानां निग्रहार्था विद्या, सा हि देवासुरगंधर्वयक्षरातसाधुपसृष्टचेतसां शान्तिकर्मबलिकरणादिभिर्ग्रहोपशमनार्थ चेति। (७) रसायन - प्रस्तुत में रस शब्द अमृतरस का परिचायक है। प्रायन प्राप्ति को कहते हैं । अमृतरस आयुरक्षक, मेधावर्धक और रोग दूर करने में समर्थ होता है, उस की विधि आदि के वर्णन करने वाले शास्त्र को रसायन कहते हैं। रसोऽमृतरसस्तस्यायनं प्राप्तिः रसायनम् , तद्धि वयःस्थापनम् , आयुर्मेधाकरम् , रोगापहरणसमर्थ च, तदभिधायक तंत्रमपि रसायनम् । (4) वाजीकरण अशक्त पुरुष को घोड़े के समान शक्तिशाली बनाने के साधनों का जिस में वर्णन किया गया हो, अर्थात् वीर्यवृद्धि के उपायों का जिस में विधान किया गया हो, उस शास्त्र को वाजीकरण कहते हैं । यह शास्त्र अल्पवीर्य को अधिक तथा पुष्ट करने के लिये उपयुक्त होता है । अवाजिनो वाजिनः करणं वाजीकरणं शुक्रवद्धनेनाश्वस्येव करणमित्यर्थः, तदभिधायक शास्त्र वाजिकरणं, तद्धि अल्पतीणविशुष्करतसामाप्यायनप्रसादोपजनननिमित्तं प्रहर्षजननार्थ चेति । इस के अतरिक्त मूल पाठ में धन्वन्तरि वैद्य के लिये-शिवहस्त शुभहस्त और लघुहस्त ये तीन विशेषण दिये हैं। इन विशेषणों से ज्ञात होता है कि रोगियों की चिकित्सा में वह बड़ा ही कुशल था। जिस रोगी को वह अपने हाथ में लेता, उसे अवश्य ही नीरोग - रोगरहित कर देता था, इसी लिये वह जनता में शिवहस्त- कल्याणकारी हाथ वाला, शुभहस्त - प्रशस्त और सुखकारी हाथ वाला, और लघुहस्त-फोड़े आदि के चीरने फाड़ने में जो इतना सिद्धहस्त था कि रोगी को चीरने एवं फाड़ने के कष्ट का अनुभव नहीं होने पाता था, ऐसा, अथवा जिस का हाथ शीघ्र काम या आराम करने वाला हो, इन नामों से विख्यात हुआ। तथा राजवैद्य धन्वन्तरि के पास छोटे, बड़े, धनिक और निर्धन सभी प्रकार के व्यक्ति चिकित्सा के निमित्त उपस्थित रहते, जिन में महाराज कनकरथ के रणवास की रानियों के अतिरिक्त मांडलिक राजा, प्रधानमंत्री, नगर के सेठ साहूकार - बड़े महाजन या व्यापारी, भी रहते थे । दुर्बल, ग्लान आदि पदों की व्याख्या निम्नोक्त है - (१) दुर्बल-कृश अर्थात् बल से रहित व्यक्ति का नाम है । २- २ग्लान-शोकजन्य (१) काशी नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से प्रकाशित संक्षिप्त हिन्दी शब्दसागर में ---रसायन शब्द के-११) वैद्यक के अनुसार वह औषध जिस के खाने से आदमी बुड्ढा या बीमार न हो (२) पदार्थों के तत्त्वों का ज्ञान (३) वह कल्पित योग जिस के द्वारा तांबे से सोना बनना माना जाता है --- इतने अर्थ लिखे हैं, और रसायन शास्त्र शब्द का-वह शास्त्र जिस में यह विवेवन हो कि पदार्थों में कौन कौन से तत्त्व होते हैं और उन के परमाणुओं में परिवर्तन होने पर पदार्थों में क्या परिवर्तन होता है ? - ऐसा अर्थ पाया जाता है। परन्तु प्रस्तुत में रसायन शब्द का टीकानुसारी ऊपर लिखा हुअा अर्थ ही सूत्रकार को अभिमत है। (२) गिलाणाणं-त्ति क्षीणहर्षाणां शोकजनितपीडानामित्यर्थः । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy