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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३९२] श्री विपाक सूत्र [सप्तम अध्याय प्राणियों की शारीरिक बनावट और उनके स्वभाव में एवं जीवन चर्या में जो महान अन्तर है, वह यत्किचित् नीचे की पंक्तियों में दिखलाया जाता है - (१) मनुष्य के पंजे, पेट की नालियां और प्रान्तें उन पशुयों के समान बनी हुई है जो मांसाहार नहीं करते हैं। किंतु मांसाहारी पशुयों के इन अंगों की रचना निरामिषभोजी पशों से सर्वथा भिन्न प्रकार की होती हैं । उदाहरण के लिये जैसे गौ, घोड़ा, बन्दर आदि पश मांसाहारी नहीं हैं और शेर, चीता आदि पशु मांसाहारी है । जो शारीरिक अवयव गौ आदि पशुयों के होते हैं, शेर आदि के वैसे अवयव नहीं होते । मनुष्य के शरीर की रचना भी मांसाहारी पशुयों की शरीररचना से सर्वथा भिन्न पाई जाती है। अतः मांसाहार मानव का प्राकृतिक भोजन नहीं है। (२) मांसाहारी पशुयों की आंखें वतु लाकार-गोल होती हैं जबकि मनुष्य की ऐसी नेत्ररचना नहीं पाई जाती। (३) मांसाहारी पशु कच्चा मांस खाकर उसे पचाने में समर्थ होता है, जब कि मनुष्य की ऐसी स्थिति नहीं होती। (४) मांसाहारी पशुयों के दान्त लम्बे और गाजर के श्राकार के तीक्षण (पेने) होते हैं, और एक दूसरे से दूर २-पृथक् २ होते हैं, परन्तु फलाहारी पशुयों के दान्त छोटे २ चौड़े २ और परस्पर मिले हुए होते हैं। मनुष्य के दान्तों का निर्माण फलाहारी पशुओं के समान पाया जाता है। (५) मांसाहारी पशुयों के नवजात बच्चों की आंखें बन्द होती हैं, जबकि मनुष्य के बच्चे की ऐसी स्थिति नहीं होती। (६) मांसाहारी पशु जिहवा से चाट कर पानी पीते हैं जब कि मनुष्य गाय, बकरी आदि पशुयों के समान घूएट भर २ कर पानी पीता है। (७) मांसाहारी पशुओं तथा पक्षियों का चमड़ा कठोर होता है और उस पर घने बाल होते हैं, जब कि मनुष्य के शरीर में ऐसी बात नहीं होती है । (८) मांसाहारी पशुयों के शरीर से पसीना नहीं आता, जब कि मनुष्य के शरीर से पसीना निकलता है। (९) मांसाहारी पशुयों के मुख में थूक नहीं रहता, जब कि अन्नाहारी और फलाहारी मनुष्य तथा गौ आदि पशुयों के मुख से थूक निकलता है। (१०) मांसाहारी पशु गरमी से हांपने पर जिहवा बाहिर निकाल लेता है जब कि मनुष्य ऐसा नहीं करता। (११) मांसाहारी पशु रात्रि के समय दूसरे प्राणियों का शिकार करते हैं और दिन को सोते हैं । जब कि मनुष्य की ऐसी स्थिति नहीं होती, वह रात्रि को सोता है । (१२) मांसाहारी जीवों को गरमी बहुत लगती है और सांस शीघ्रता से आने लगता है परन्तु अन्नाहारी एवं फलाहारी जीवों को न इतनी गरमी लगती है और न ही सांस तीव्रता से चलता है । मनुष्य की गणना ऐसे ही जीवों में होती है । (१३) मांसाहारी पशुओं का जीवननिर्वाह फलों से नहीं हो सकता, जब कि मनुष्य मांस के बिना ही अपने जीवन को चला सकता है । (१४) मनुष्य को यदि मनोरंजन के लिये किसी स्थान में जाने की भावना उठे तो वह बागों, फुलवाड़ियों और वनस्पति से लहलहाते हुए स्थानों में जाता है, किन्तु मांसाहारी जीव वहां For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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