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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३७४ ] श्री विपाक सूत्र [म अध्याय " ~~~33 प्रार्थना पर विपाकश्रुत के दुःखविपाक नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध के अध्ययनों का वर्णन सुना रहे हैं । उन में छठे अध्ययन का वर्णन समाप्त हो चुका है । इस की समाप्ति पर आर्य जम्बू स्वामी फिर पूछते हैं कि भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के छठे अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है जिस का कि वणन आप फ़रमा चुके हैं, तो उन्हों ने सातवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? इस प्रश्न को सूत्रकार ने " - सत्तमस्स उक्खेबोइतने पाठ में गर्भित कर दिया है। तात्पर्य यह है कि छठे अध्यय का अर्थ सुनने के बाद श्री जम्बूस्वामी ने जो सातवें अध्ययन के अर्थ - श्रवण की जिज्ञासा की थी, उसी को सूत्रकार ने दो पदों द्वारा संक्षेप में प्रदर्शित किया है । उन पदों से अभिव्यक्त सूत्रपाठ निम्नोक्त है - जइ णं भंते ! सणेणं भगवया महावीरेणं जाव सम्पत्तणं दुहविवागाणं हट्ठस्स अज्झयणस्स श्रयमट्टे पण्णत्तो, मत्तमस्स णं भंते! अभयास्स के अहे पण ते १ - " इन पदों का अर्थ ऊपर की पंक्तियों में लिखा जा चुका है । आर्य जम्बूस्वामी के उक्त प्रश्न के उत्तर में श्री सुधर्मा स्वामी ने जो कुछ फुरमाना आरम्भ किया, अव निम्नलिखित सूत्र में उस का उल्लेख करते हैं— मूल - १ एवं खलु अबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे गरे । वणसंडे उज्जाणे । उम्बरदत्त जखे । तत्थ गं पडलिमंडे रागरे सिद्धत्थे राया । तत्थ णं पाडलिसंडे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था, अड्डे ० । गंगादत्ता भारिया, तस्स गं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगादत्ताए भाग्यिाए अत्तए उबग्दत्ते नामं दारए होत्था, ही ० । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओो समोसरणं, परिसा जान गयो । पदार्थ - एवं खलु - इस प्रकार निश्चय ही । जम्बू ! - हे जम्बू ! । तेणं कालेणंउस काल में । तेणं समपर्ण -उस समय में । पाडलिसंडे - पाटलिपंड । गगरे- - नगर था । वणसंडे - वन षंड नामक । उज्जाणे - उद्यान था. वहां । उम्बरदत्त - उम्बरदत्त नामक । जक्खे - यक्ष था अर्थात् उसका स्थान था । तत्थ णं - उस | पाडलिसंड े - पाटलिपण्ड । गरे- - नगर में । सिद्धत्थे - सिद्धार्थ नामक । राया - राजा था। तत्थ गं - -उस । पाडलिसंडे - पाटलिपण्ड नगर में । सागरदन्त सागरदत्त नाम का । सत्थवाहे - सार्थवाह - यात्री व्यापारियों का नायक । होत्था- - था । अ० जो कि धनाढ्य यावत् अपने नगर में बड़ा प्रतिष्ठित था । गंगादता भारिया - उस की गंगादत्ता नाम की भार्या थी । तस्स - - उस | सागरदत्तस्स - सागरदत्त सार्थवाह का । पुन्ते - पुत्र । गंगादत्ताए भारियाए - गंगादत्ता भार्या का । अत्तर = श्रात्मज - पुत्र | उंबरदरा - उम्बरदत्त | नामनामक । दारए – बालक । होत्था - था, जो कि । श्रहीण० - अन्यून एवं निर्दोष पंचेन्द्रियशरीर से विशिष्ट था । तेणं कालेणं २ उस काल और उस समय में । समणस्स - श्रमण । भगवत्रीभगवान महावीर स्वामी का । समोसरणं - समवसरण हुआ अर्थात् भगवान् वहां उद्यान में पधारे । (१) छाया - एवं खलु जम्बू ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये पाटलिषंडं नगरं । वनघण्डमुद्यानम् । उम्बरदत्तो यक्ष: । तत्र पाटलिषंडे नगर सिद्धार्थो राजा । तत्र पाटलिषंडे सागरदत्तः सार्थवाहोऽभूद्, आढ्यः० । गंगादत्ता भार्या । तस्य सागरदत्तस्य पुत्रो गंगादत्तायाः भार्यायाः श्रात्मजः, उम्बरदत्तो नाम दारकोऽभूदहीन० । तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतः समवसरणं, परिषद् यावत् गतः । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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