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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पश्चम अध्याय] हिन्दी भाषा टीका सहित । [३३५ रत्नप्रभा नामक पृथिवी-नरक में उत्पन्न होगा । संसारो-संसारभ्रमण । तहेव- तथैव-वैसे ही अर्थात् पहले की भांति समझना । जाव-यावत् । पढवीए०-पृथिवीकाया में लाखों बार उत्पन्न होगा, वहां से निकलकर । हत्थिणाउरे-हस्तिनापुर । रणगरे-णगर में । मियत्ताएमृगरूप से । पञ्चायाहिति-उत्पन्न होगा । से णं-वह । तत्थ-वहां पर । वाउरिएहिवागरिकों_शिकारियों के द्वारा । अहिले समाणे-मारा जाने पर । तत्येव-उसी । हस्थिणाउरेहस्तिनापुर । णगरे-नगर में । सेटिकुलसि-श्रेष्ठिकुल में । पुत्तत्ताए० -पुत्ररूप से उत्पन्न होगा । बोहिं०-सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा, वहां से । सोहम्मे०-सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा, वहां से च्यव कर । महाविदेहे-महविदह क्षेत्र में उत्पन्न होगा, तथा वहां से । सिज्झिहिति ५-सिद्धि प्राप्त करेगा ५ । णिक्खेवो-निक्षेप-उपसंहार पूर्व की भान्ति जान लेना चाहिए । पंचम - पांचवां । अज्झयणं-अध्ययन । समत्तं-सम्पूर्ण हुआ । मूलार्थ-हे गौतम ! वृहस्पतिदत्त पुरोहित ६४ वर्ष की परमायु को पाल कर आज ही दिन के तीसरे भाग में सूली से भेदन किये जाने पर कालावसर में काल कर के रत्नप्रभा नामक प्रथम पृथिवी-नरक में उत्पन्न होगा, एवं प्रथम अध्यनगत मृगापुत्र की भांति संसारभ्रमण करता हुआ यावत् पृथिवोकाया में लाखों बार उत्पन्न होगा, वहां से निकल कर इस्तिनापुर नगर में मृगरूप से जन्म लेगा । वहां पर वागुरिकों - जाल में फंसाने का काम करने वाले व्याधों के द्वारा मारा जाने पर इसी हस्तिनापुर नगर में श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूपेण जन्म धारण करेगा। वहां सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा और काल करके सौधर्म नामक प्रथन देवलोक में उत्पन्न होगा, वहां से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा, तथा वहां अनगारवृनि को धारण कर संयमाराधन के द्वारा क्रमों का क्षय करके सिद्धिपद को प्राप्त करेगा । निक्षेप - उपंसहार पूर्ववत् जान लेना चाहिये। ॥ पंचम अध्ययन समाप्त ।। टीका-प्रस्तुत सूत्र में बृहस्पतिदत्त के आगामी भवों का वर्णन किया गया है । तथा मानवभव में बोधिलाभ के अनन्तर उसने जिस उत्क्रान्ति मार्ग का अनुसरण किया और उस के फलस्वरूप अन्त में उसे जिस शाश्वत सुख की उपलब्धि हुई उस का भी सूत्रवणनशैली के अनुसार संक्षेप से उल्लेख कर दिया गया है । ___ गौतम स्वामी के सम्बोधित करते हुए वीर प्रभु ने फरमाया कि गौतम ! वृस्पतिदत्त पुरोहित के जीव की आगामी भवयात्रा का वृत्तान्त इस प्रकार है - उस की पूर्ण अयु ६४ वर्ष की है । आज वह दिन के तीसरे भाग में सूली पर 1) प्रस्तत कथासन्दर्भ में जो यह लिखा है कि वृहस्पतिदत्त को दिन के तीसरे भाग में सूली पर चढ़ा दिया जायगा । इस पर यह अ.शंका होती है कि जब कोशाम्बी नगरी के राजमार्ग पर उस के साथ बड़ा क र एव निर्दय व्यवहार किया गया था । अवकोटकबन्धन से बान्ध कर, उसी के शरीर में से निकाल कर उसे भांसखण्ड खिलाए जा रहे थे । तथा चाबुकों के भीषणातिभीषण प्रहारों से उसे मारणान्तिक कष्ट पहुंचाया गया था तब वहां उस के प्राण कैसे बचे होंगे १ अर्थात् मानवी जीवन में इतना बल कहां है कि वह इस प्रकार के भीषण नरक-तल्य संकट झेल लेने पर भी जीवित रह सके ? इस आशंका का उत्तर पृष्ठ २७३ पर दिया जा चुका है । अन्तर मात्र इतना है कि वहां अभ्रमसेन चोरसेनापति का वर्णन है कि जब कि प्रस्तुत में वृहस्पतिदत्त का । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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