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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अथ पञ्चम अध्याय जिस प्रकार जड़ को सींचने से वृक्ष की सभी शाखा प्रशाखा और पत्र आदि हरे भरे रहते हैं, ठीक उसी तरह ब्रह्मचर्य के पालन से सभी अन्य व्रत भी आराधित हो जाते हैं अर्थात् इस के श्राराधन से तप, संयम आदि सभी अनुष्ठान सिद्ध हो जाते हैं । यह सभी व्रतों तथा नियमों का मूल जड़ है, इस तथ्य के पोषक वचन श्री प्रश्नव्याकरण आदि सूत्रों में भगवान् ने अनेकानेक कहे हैं । 1 इत्यादि । जैसे ब्रह्मचर्य की महिमा का वर्णन करना सरल नहीं है, उसी तरह ब्रह्मचर्य के विपक्षी मैथुन से होने वाली हानियां भी आसानी से नहीं कही जा सकती हैं । वीर्यनाश करने से शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक सभी प्रकार की शक्तियों का ह्रास होता है । बुद्धि मलिन हो जाती है एवं जीवन पतन के गढ़े में जा गिरता है, यह अनुभव सिद्ध बात है कि जहां सूर्य की किरणें होंगी वहां प्रकाश अवश्य होगा और जहां प्रकाश का अभाव होगा वहां अन्धकार की अवस्थिति सुनिश्चित होगी । इसी भांति जहां ब्रह्मचर्य का दिवाकर चमकेगा, वहां आध्यात्मिक ज्योति की किरण जगमगा उठेंगी । इसके विपरीत दुराचार का जहां प्रसार होगा वहां अज्ञानान्धकार का भी सर्वतोमुखी साम्राज्य होगा । आध्यात्मिक प्रकाश में रमण करने वाला आत्मा कल्याणेन्मुखी प्रगति की ओर प्रयाण करता है, जब कि अज्ञानान्धकार में रमण करने वाला श्रात्मा चतुर्गतिरूप संसार में भटकता रहता है । गत चतुर्थ अध्ययन में शकट कुमार नाम के व्यभिचारपरायण व्यक्ति के जीवन का जो दिग्दर्शन कराया गया है, उस पर से यह बात अच्छी तरह से स्पष्ट हो जाती है । प्रस्तुत पांचवें अध्ययन में भी एक ऐसे ही मैथुनसेवी व्यक्ति के जीवन का परिचय कराया गया है, जो कि शास्त्र और लोक विगर्हित व्यभिचारपूर्ण जीवन बिताने वालों में से एक था । सूत्रकार ने इस कथासंदर्भ से मुमुक्ष – जनों को व्यभिचारमय प्रवृत्ति से सदा पराङमुख रहने का व्यतिरेक दृष्टि से पर्याप्त सदूबोध देने का अनुग्रह किया है । इस पांचवें अध्ययन का श्रादिम सूत्र इस प्रकार है - मूल - 'पंचमस्स उक्खेवो, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी णामं नगरी होत्था, रिद्ध० । वाहिं चंदोत्तरणे उज्जाणे, सेयभद्दे जक्खे । तत्थ (१) छाया - पञ्चमस्योत्क्षेपः । एवं खलु जम्बू : ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये कौशाम्बी नाम नगर्यभवत्, ऋद्ध० । बहिश्चन्द्रावतरणमुद्यानम् । श्वेतभद्रो यक्ष: । तत्र कौशाम्ब्यां नगर्यां शतानीको नाम राजाऽभवत्, महा० । मृगावती देवी । तस्य शतानीकस्य पुत्रो मृगावत्या श्रात्मजः उदयनो नाम कुमारोऽभूदहीन० युवराजः । तस्योदयनस्य कुमारस्य पद्मावतो नाम देव्यभवत् । तस्य शतानीकस्य सोमदत्तो नाम पुरोहितोऽभूत्, ऋग्वेद० । तस्य सोमदत्तस्य वसुदत्ता नाम भार्याऽभूत् । तस्य सोमदत्तस्य पुत्रो वसुदत्ताया आत्मजो वृहस्पतिदत्तो नाम दारकोऽभूदहीन० । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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