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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चतुर्थ अध्याय 1 हिन्दी भाषा टीका सहित। [२८७ हृदय में जो संकल्प उत्पन्न हुए थे, उन का भी वणन किया। तदनन्तर उस सस्त्रीक व्यक्ति के विषय में उसके कष्ट का मूल जानने की इच्छा से उसके पूर्वजन्म का वृत्तान्त सुनने की लालसा रखते हुए भगवान् गौतम ने वीर प्रभु से विनम्र निवेदन किया कि भगवन् ! यह पुरुष पूर्वभव में कौन था ? और उसने पूर्वजन्म में ऐसा कौन सा कर्म किया था जिसके फलस्वरूप उसे इस प्रकार के असह्य कष्टों को सहन करने के लिये वाधित होना पड़ा ? इस प्रश्न के उत्तर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जो कुछ फ़रमाया , उसका वर्णन अग्रिम सूत्र में दिया गया है। -समणस्स०-यहां के बिन्दु से -भगवओ महावीरस्स-इन पदों का ग्रहण समझना, और - अन्तेवासी जाव रायमग्गे -- यहां के जाव-यावत् पद से-इन्दभूती नामं अमगारे गोयम - सगोत्तणं- 'से लेकर-संखित्तविउलतेउलेसे छठंछट्टणं अणिक्खेित्तणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तए णं से भगवं गोयमे छक्वमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए- से लेकर दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-यहां तक के पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। -पुरिसे०- यहां के बिन्दु से-पासति सन्नद्धबद्धवम्मियकवए-से लेकर-गहियाउहपरणेयहां तक के पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभीष्ट है । इन पदों का शब्दार्थ पृष्ठ १२४ पर दिया जा चुका है। "-उकिावत्तकराणनासं जाव उग्घोसणं-" यहा का जाव-यावत् पद -नेहतुप्पिय. गरां-से लेकर-इमं च एयारूवं-यहां तक के पाठ का परिचायक है । इन पदों का शब्दार्थ पृष्ठ १२६ तथा १२५ पर दिया गया है। -चिंता तहेव जाव-यहां पठित चिन्ता शब्द से-तते णं से भगवश्रो गोतमस्स तं पुरिसं पासित्ता इमे अज्झत्थिते ५ समुप्पज्जित्था-अहो णं इमे पुरिसे जाव निरयपडिरूवियं वेयणं वेदेति-इन पदों का ग्रहण कराना सूत्रकार को अभिमत है । इन पदों का अर्थ पृष्ठ १३२ पर लिखा जा चुका है। तथा तहेव-पद से जो विवक्षित है उस का उल्लेख पृष्ठ १३३ पर किया गया है । तथा-जाव-यावत् पद से-साजणीए नगरीए उच्चनीयमज्झिमकुले-से लेकरपच्चणुभवमाणे विहरति- यहां तक के पाठ का ग्रहण करना अभिमत है । इन का अर्थ पृष्ठ १३२ पर लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां वाणिजग्राम नगर का उल्लेख है जब कि यहां साहजनी नगरी का । अवशिष्ट वर्णन समान ही है । अब सूत्रकार गौतम स्वामी के उक्त प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने जो कुछ फरमाया, उस का वर्णन करते हैं मूल-एवं खलु गोतमा ! तेणं कालेणं तेणं समरणं इहेव जंबुद्दोवे दीवे भारहे (१) इन समस्त पदों का वर्णन पृष्ठ १० पर किया गया है। (२) समस्त पद जानने के लिये देखो पृष्ठ १९२ : (३) छाया-एवं खलु गौतम ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये इहैव जंबूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे छगलपुरं नाम नगरमभवत् । तत्र सिंह गिरिः नाम राजाभूत् , महता० । तत्र छगलपुरे नगरे छरिणको नाम छागलिकः परिवसति, श्रादयः०, अधार्मिको यावत् दुष्प्रत्यानन्दः । तस्स छरिणकस्य' For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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