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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तीसरा अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित। २४९] का निश्चय कर लिया है । अतः उस दंडनायक को शालाटवी चोरपल्ली तक पहुंचने से पहले ही रास्ते में रोक देना हमारे लिये उचित प्रतीत होता है । अभन्नसेन के इस परामर्श को चोरों ने "तथेति” (बहुत ठीक है, ऐसा ही होना चाहिये) ऐसा कह कर स्वीकार किया । तदनन्तर अभग्नसेन चोरसेनापति ने विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम वस्तुओं को तैयार कराया तथा पांच सौ चोरों के साथ स्नान से निवृत्त हो कर, दुस्वप्न आदि के फल को विफल करने के लिये मस्तक पर तिलक तथा अन्य मांगलिक कृत्य करके, भोजनशाला में उस विपुल अशनादि वस्तुओं तथा पांच प्रकार की मदिराओं का यथारुचि आस्वादन. विस्वादन आदि करना आरम्भ किया । भोजन के अनन्तर उचित स्थान पर आकर आचमन किया और मुव के लेपादि को दूर कर अर्थात् परमशुद्ध हो कर पांच सौ चोरों के साथ आद्र चर्म पर आरोहण किया । तदनन्तर दृढ़ बन्धनों से बन्धे हुए और लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच को धारण करके यावत् आयुधों और प्रहरणों से सुसज्जित हो कर, हाथों में ढालें बांध कर यावत् महान् उत्कृष्ट और सिंहनाद आदि के शब्दों द्वारा समुद्रशब्द को प्राप्त हुए के समान गगनमंडल को शब्दायमान करते हुए अभग्नसेन ने शालाटवी चोरपल्लो से मध्याह्न के समय प्रस्थान किया और वह खाद्यपदार्थों को साथ लेकर विषम और दुर्ग गहन-वृक्षवन में स्थिति करके उस दण्डनायक की प्रतीक्षा करने लगा। टीका-प्रस्तुत सूत्र में सेनापति अभमसेन की ओर से दण्डनायक के प्रतिरोध के लिये किये जाने वाले सैनिक आयोजन का दिग्दर्शन कराया गया है ।। अपने गुप्तचरों की बात सुनकर तथा विचार कर अभग्नसेन ने अपने पांच सौ चोरों को बुलाया और उन से वह सप्रेम बोला कि महानुभावो! मुझे आज विश्वस्त सूत्र से पता चला है कि इस प्रान्त के नागरिकों ने महाबल नरेश के पास जाकर हमारे विरुद्ध बहुत कुछ कहा है, जिस के फलस्वरूप महाबल नरेश को बड़ा क्रोध आया और उसने अपने दण्डनायक-कोतवाल को बुला कर चोरपल्ली पर आक्रमण कर उसे विध्वंस करने-लूटने तथा मुझे जीवित पकड़ कर अपने सामने उपस्थित करने आदि का बड़े उन शब्दों में आदेश दिया है । तब यह आदेश मिलते ही दण्डनायक ने भी तत्काल ही बहुत से सुभटों को अस्त्रशस्त्रादि से सुसज्जित कर के पुरिमताल नगर से निकल कर शालाटवी चोरपल्ली की ओर प्रस्थान करने का निश्चय कर लिया है । ___ उस के आक्रमण की सूचना तो हमें मिल चुकी है । अब हम को चोरपल्ली की रक्षा का विचार करना चाहिये । हमारी इस समय एक बलवान् से टक्कर है, इस लिये अधिक से अधिक बल का संचय कर के उसका प्रतिरोध करना चाहिये । इस के लिये मैंने तो यह सोचा है कि शीघ्र ही शस्त्रादि से सन्नद्ध हो कर दण्डनायक को मार्ग में ही रोकने का यत्न करना चाहिये। सेनापति अभमसेन के इस विचार का सब ने समर्थन किया और वे अपनी २.तैयारी में लग गये । इधर अभमसेन ने भी खाद्यसामग्री को तैयार कराया तथा सब के साथ स्नानादि कार्य से निवृत्त हो कर दुस्स्वप्न आदि के फल को विनष्ट करने के लिये मस्तक पर तिलक एवं अन्य मांगलिक कार्य करके भोजनशाला में उपस्थित हो सब के साथ भोजन किया अर्थात् स्वयं जिमा और सब को जिमाया । भोजन के अनन्तर विविध भान्ति के भोज्यपदार्थों तथा सुरादि मद्यों का For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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