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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तीसरा अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [२३९ अंजलि कट्टु - दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजली करके । महब्वलं -महाबल । रायंराजा को । एवं वयासी - इस प्रकार कहने लगे । मूलार्थ - तदनन्तर अभग्नसेन नामक चोरसेनापति के द्वारा बहुत से ग्रामों के विनाश से सन्तप्त हुए उस देश के लोगों ने एक दूसरे को बुला कर इस प्रकार कहा हे बन्धुओ ! चोरसेनापति अभग्नसेन पुरिमताल नगर के उत्तर प्रदेश के बहुत ग्रामों का विनाश करके वहां के लोगों को धन, धान्यादि से शून्य करता हुआ विहरण कर रहा है। इसलिये हे भद्रपुरुषो ! पुरिमताल नगर के महाबल नरेश को इस बात से संसूचित करना हमारा कर्तव्य बन जाता है । तदनन्तर देश के उन मनुष्यों ने परस्पर इस बात को स्वीकार किया और महार्थ, महार्घ, महार्ह और राजार्ह प्राभृत- भेंट लेकर, जहां पर पुरिमताल नगर था और जहां पर महाबल राजा विराजमान थे, वहां पर आये और दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि रख कर महाराज को वह प्राभृत- भेंट अर्पण की तथा अर्पण करने के अनन्तर वे महाबल नरेश से इस प्रकार बोले 1 टोका- प्राप्त हुई वस्तु का सदुपयोग या दुरुपयोग करना पुरुष के अपने हाथ की बात होती है । एक व्यक्ति अपने बाहुबल से अत्याचारियों के हाथों से पीड़ित होने वाले अनेक अनाथों, निर्बलों और पीड़ितों का संरक्षण करता है और दूसरा उसी बाहुबल को दीन अनाथ जीवों के विनाश में लगाता है। बाहुबल तो दोनों में एक जैसा है परन्तु एक तो उस के सदुपयोग से पुण्य का संचय करता है, जबकि दूसरा उसके दुरुपयोग से पापपुञ्ज को एकत्रित कर रहा है । चोरपल्ली में रहने वाले चोरों के द्वारा सेनापति के पद पर नियुक्त होने के बाद अग्रसेन ने अपने बल और पराक्रम का सदुपयोग करने के स्थान में अधिक से अधिक दुरुपयोग करने का प्रयास किया । नागरिकों को लूटना, ग्रामों का जलाना, मार्ग में चलते हुए मनुष्यों का सब कुछ खोंस लेना और किसी पर भी दया न करना, उसके जीवन का एक कर्तव्यविशेष बन गया था । सारे देश में उसके इन क्ररता - पूर्ण कृत्यों की धाक मची हुई थी। देश के लोग उस के नाम से कांप उठते थे । लोग वहां के प्रसिद्ध २ भग्नसेन ने तो अत्याचार एक दिन उसके अत्याचारों से नितान्त पीड़ित हुए देश पुरुषों को बुला कर आपस में इस प्रकार विचार करने लगे कि चोरसेनापति की अति ही कर दो है, वह जहां जिसको देख पाता है वहां लट लेता भी उस की लूट से कोई बचा हुआ दिखाई नहीं देता, उसने तो को जलाना ओर घर में रहने वालों पर अत्याचार करना तो उसके लिये एक साधारण सी बात बन गई है। अधिक क्या कहें उसने तो हमारे सारे देश का नाक में दम कर रक्खा है। इसलिये हमको इसके प्रतिकार का कोई न कोई उपाय अवश्य सोचना चाहिये । अन्यथा हमें इससे भी अधिक कष्ट सहन करने पड़ेंगे और निर्धन तथा कंगाल होकर यहां से भागना पड़ेगा । है। नगरों, ग्रामों और शहरों में भी नहीं छोड़ा। घरों गरीबों को इस प्रकार परस्पर विचार-विनिमय करते हुए अन्त में उन्हों ने यह निश्चय किया कि इस आपत्ति के प्रतिकार का एक मात्र उपाय यही है कि यहां के नरेश महाबल के पास जाकर अपनी सारी आपत्ति का निवेदन किया जाये और उन से प्रार्थना की जाये कि वे हमारी इस दशा में पूरी २ सहायता करें। तदनन्तर इस सुनिश्चित प्रस्ताव के अनुसार उन में से मुख्य २ लोग राजा के For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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