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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तीसरा अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [२०९ होता है कि वध्य व्यक्ति की मनोवृत्ति को अधिक से अधिक आघात पहुँचाया जावे । अथवा-इस का यह मतलब भी हो सकता है कि उसके कामों में जो भी हिस्सेदार हैं, उन्हें भी दण्डित किया जाये। या यह कि उन की ताडना से दूसरी जनता को शिक्षा मिले कि भविष्य में अगर किसी ने अपराध किया तो अपराधी के अतिरिक्त उसके सगे सम्बन्धी भी दण्डित होने से नहीं बच सकेंगे। ताकि आगे को अपराध की बहुलता न होने पावे, इत्यादि । ___ अथवा -"तते गं तं पुरिसं रायपुरिसा''-इत्यादि पदों में पढ़े गये "अग्गो " पद के आगे "काउणं-कृत्वा' – इस पद का सर्वत्र अध्याहार करके यह अर्थ भी। संभव हो सकता है किउस पुरुष को राजपुरुषों ने चौंतरे पर बिठलाया, और उस के आठ चाचाओं को आगे कर लिया, तथा उनके आगे अर्थात् सामने उस वध्य पुरुष को निर्दयतापूर्वक मारा, इत्यादि । सगे सम्बन्धियों के सामने मारने या पीटने का अर्थ - दोषी या अपराधी को अधिकाधिक दःखित करना होता है । यह अर्थ इस लिए अधिक सम्भव प्रतीत होता है कि न्यायानुसार तो जो कर्म करे वही उसका फल भोगे । यह तो न्याय से सर्वथा विपरीत है कि अपराधी के साथ २ निरपराधी भी दंडित किये जाएं । वध्यव्यक्ति के पारिवारिक लोग उसके कार्यों के सहयोगी थे; अनुमोदक थे, इसलिए उन्हें उसके सामने दण्डित किया गया है। तथा-वध्यव्यक्ति को अत्यधिक दुःखित करने के लिये उसके पारिवारिक व्यक्तियों के सामने उसे मारा पीटा गया है। इन दोनों अर्थों के अतिरिक्त तीसरा यह अर्थ भी असंभव नहीं है कि महाबल नरेश ने मात्र अपने क्रोधावेश के ही कारण वध्यव्यक्ति के निर्दोष परिवार को भी मारने की कड़ी अाज्ञा दे डाली हो । रहस्यं तु केवलिगम्यम् । प्रस्तुत सूत्र में श्री गौतम स्वामी द्वारा अवलोकित करुणाजनक दृश्य का वर्णन किया गया है। अब सूत्रकार अग्रिम सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास श्री गौतम स्वामी द्वारा किये गये उक्त-विषय-सम्बन्धी प्रश्न का वर्णन करते हैं- . मूल- । तते णं से भगवं गोतमे तं पुरिसं पासति २ ता इमे एयारूवे अज्झथिए ५ समुप्पन्ने जाव तहेव णिग्गते एवं वयासी-एवं खलु अहं भंते ! तं चेव जाव, सेणं भंते ! पुरिसे पुव्वभवे के आसि ? जाव विहरति ? पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । से-वह । भगवं-भगवान् । गोतमे-गौतम । तं-उस । परिसं-परुष को । पासति-देखते हैं । २त्ता-देख कर। इमे-यह । एयारुवे-इस प्रकार का । अज्झथिए ५-श्राध्यात्मिक-संकल्प ५ । समुप्पन्ने-उत्पन्न हुअा। जाव-यावत् । तहेवतथैव-पहले की भान्ति । णिग्गते-नगर से निकले, तथा भगवान के समीप आकर । एवं-इस प्रकार । वयासी-कहने लगे । भंते ! -हे भगवन् ! । अहं-मैं । एवं-इस प्रकार आप की आज्ञा के अनुसार अाहार के लिये गया । खनु-निश्चययार्थक है । तं चेव-उस देखे हुए दृश्य का । जाव -यावत् वर्णन किया तथा पूछा कि । भंते !-हे भगवन् ! । से णं-वह । पुरिसे-पुरुष । (१) छाया-ततः स भगवान् गौतमः तं पुरुषं पश्यति दृष्ट्वा अयमेतद्रूपः आध्यात्मिकः ५ समुत्पन्नो यावत् तथैव निगतः एवमवदत्-एवं खलु अहं भदन्त ! तच्चैव यावत् स भदन्त ! पुरुषः पूर्वभवे कः आसीत् । यावद् विहरति । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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