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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २००] श्रो विपाक सूत्र [तीसरा अध्याय नगर का। शेष वर्णन “-अवोडय० जाव उग्रोसेजमाणं-" यहां पठित "-जाव-यावत्-"पद से सूत्रकार ने सूत्रपाठ को संक्षिप्त कर के पूर्ववर्णित दूसरे अध्ययनगत "-उक्कित्तकरणनासं, नेहतुषियगतं " से लेकर "--चञ्चरे चञ्चरे खण्डपडहएणं" - यहां तक के पाठ के ग्रहण करने की सूचना दे दी है, जिस का कि प्रथम, पृष्ठ १०४ श्रादि पर उल्लेख किया जा चुका है। "-चच्चर-" शब्द का संस्कृत प्रतिरूप "चत्वर" - होता है, जो कि कोषानुमत भी है। परन्तु टीकाकार श्री अभय देव सूरि ने इसका संस्कृत प्रतिरूप "चर्चए' ऐसा माना है । “पढमंसि चञ्चरंसि, प्रथमे चर्चरे स्थानविशेषे- । . "-कलुणं'- यह पद क्रियाविशेषण है । इस की व्याख्या में वृत्तिकार लिखते हैं कि - "कलुणं त्ति करुणं करुणास्पदं तं पुरुषं, क्रियाविशेषणं चेदम्' अर्थात् करुणास्पद - करुणा के योग्य को कलुण कहते हैं। -काकिणोमांस' का अर्थ होता है, जिस को मांस खिलाया जा रहा है, उसी मनुष्य के शरीर में से अथवा किसी भी अन्य मनुष्य के शरीर में से कौड़ी जैसे अर्थात् छोटे छोटे निकाले गये मांस के टुकड़े। ऐसे मांस खण्डों को खाना -काकिणीमांसभक्षण कहलाता है। "-मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरियणं-की व्याख्या वृत्तिकार के शब्दों में इस प्रकार है . "-मित्राणि-सुहृदाः, ज्ञातयः -समानजातीयाः. निजका:-पितामातरश्च, स्वजना:-मातुलपुत्रादयः, सम्बन्धिनः-श्वशुरशालादयः, परिजनः-दासीदासादिस्ततो द्वन्द्वः अतस्तान् तत् । अर्थात् मित्र-सुहृद् का नाम है, तात्पर्य यह है कि जो साथी, सहायक और शुभचिन्तक हो, उसे मित्र कहते हैं । ज्ञाति शब्द से समान जाति ( बिरादरी ) वाले व्यक्तियों का ग्रहण होता है । निजक पद माता पिता आदि का बोधक है । स्वजन शब्द मामा के पुत्र आदि का परिचायक है । श्वशुर, साला आदि का ग्रहण सम्बन्धी शब्द से होता है । परिजन दास और दासी आदि का नाम है । "-चुल्जमाउयाओ-” इस पद के दो अर्थ किये जाते हैं-एक तो पिता के छोटे भाइयों की स्त्रिऐं, दूसरा-माता की लघुसपत्निएँ अर्थात् पिता की दो स्त्रियां हों उन में छोटो स्त्री भी क्षुद्रमाता कहलाती है । टीकाकार के शब्दों में "-पितृलघुभ्रातृजायाः अथवा मातुर्लघुसपत्नी:- यह कहा जा सकता है । "-णसु यावई - "इस पद के भी दो अर्थ होते हैं, जैसे कि (१) पौत्री-पोती के पति और (२) दौहित्री-दोहती के पति' । ___"-अट्ठ चुल्लपिउए-" इत्यादि पदों से सूचित होता है कि वध्य व्यक्ति का परिवार बड़ा विस्तृत था और उसके साथ ही रहता था, अथवा राजा से मिलने के कारण वध्य व्यक्ति ने अपने पारिवारिक व्यक्तियों को बुला लिया हो, यह भी संभव हो सकता है । राजा से मिलने आदि का समस्त वृत्तान्त अग्रिम जीवनी के अवलोकन से स्पष्ट हो जायगा ।। वध्य व्यक्ति के सामने उसके परिवार को मारने तथा पीटने का तात्पर्य तो यह प्रतीत (१) "-जत्तु यावई" त्ति-नप्तृकापती-पौत्रीणां दौहित्रीणां वा भर्तृन्-'" (टीकाकार For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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