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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir स्वाध्याय हिन्दीभाषाटीकासहित क पूर्णिमा और चैत्र पूर्णिमा-ये चार महोत्सव हैं । उक्त महापूर्णिमाओं के बाद आने वाली प्रतिपदा महाप्रतिपदा कहलाती है। चारों महापूर्णिमाओं और चारों महाप्रतिपदाओं में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। (२६-३२) प्रातःकाल, दुपहर, सायंकाल और अद्ध रात्रि-ये चार सन्ध्याकाल हैं। इन संध्याओं में भी दो घड़ी तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । इन बत्तीस अस्वाध्यायों का विस्तृत विवेचन तो श्री स्थानांगसूत्र, व्यवहारभाष्य तथा हरिभद्रीयावश्यक में किया गया है । अधिक के जिज्ञासु पाठक महानुभाव वहां देख सकते हैं। आगमग्रन्थों में श्री विपाकसूत्र का भी अपना एक मौलिक स्थान है, अतः श्री विपाकसूत्र के अध्ययन या अध्यापन करते या कराते समय पूर्वोक्त ३२ अस्वाध्यायकालों के छोड़ने का ध्यान रखना चाहिए। दूसरे शब्दों में इन अस्वाध्यायकालों में श्री विपाकसूत्र का पठन पाठन नहीं करना चाहिए । इसी बात की सूचना देने के लिए प्रस्तुत में ३२ अस्वाध्यायों का विवरण दिया गया है । के- ऊपर कहे गए ३२ अत्वाध्यायों का भाषानुवाद प्रायः कविरत्न श्री अमर चन्द्र जी महाराज द्वारा अनुवादित श्रमणसूत्र में से साभार उद्धृत किया गया है। - MALAAAAAAAAI - For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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