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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री विपाकसूत्र [स्वाध्याय (१४)अशुचि-टट्टी और पेशाब यदि स्वाध्यायस्थान के समीप हों और वे दृष्टिगोचर होते हों अथवा उन की दुर्गन्ध आती हो तो वहां स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। (१५) श्मशान-श्मशान के चारों तरफ़ सौ-सौ हाथ तक स्वाध्याय न करना चाहिए । (१६) चन्द्रग्रहण- चन्द्र-ग्रहण होने पर जयन्य पाठ और उत्कृष्ट बारह प्रहर तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। यदि उगता हुआ चन्द्र ग्रसित हुआ हो तो चार प्रहर उस रात के एवं चार प्रहर आगामी दिवस के इस प्रकार आठ प्रहर तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। यदि चन्द्रमा प्रभात के समय प्रहण-सहित अस्त हुआ हो तो चार प्रहर दिन के, चार प्रहर रात्रि के एवं चार प्रहर दूसरे दिन के इस प्रकार बारह प्रहर तक अस्वाध्याय रखना चाहिए। पूर्ण ग्रहण होने पर भी बारह प्रहर स्वाध्याय न करना चाहिए। यदि ग्रहण अल्प-अपूर्ण हो तो आठ प्रहर तक अस्वध्यायकाल रहता है। (१७) सूर्यग्रहण- सूर्यग्रहण होने पर जघन्य बारह और उत्कृष्ट सोलह प्रहर तक अस्वाध्याय रखना चाहिए । अपूर्ण ग्रहण होने पर बारह और पूर्ण तथा पूर्ण के लगभग होने पर सोलह प्रहर का अस्वाध्याय होता है । सूर्य अस्त होते समय ग्रसित हो तो चार प्रहर रात के और पाठ आगामी अहोरात्रि के इस प्रकार सोलह प्रहर तक अस्वाध्याय रखना चाहिए । यदि उगता हुआ सूर्य ग्रसित हो तो उस दिन रात के पाठ एवं आगामी दिन रात के आठ-इस प्रकार सोलह प्रहर तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । ___ (१८) पतन-राजा की मृत्यु होने पर जब तक दूसरा राजा सिंहासनारूढ़ न हो, तब तक स्वाध्याय करना निषिद्ध है । नये राजा के हो जाने के बाद भी एक दिन रात तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। राजा के विद्यमान रहते भी यदि अशान्ति एवं उपद्रव हो जाय तो जब तक अशान्ति रहे तब तक अस्वाध्याय रखना चाहिए । शांति एवं व्यवस्था हो जाने के बाद भी एक अहोरात्रि के लिए अस्वाध्याय रखा राजमंत्री की, गाँव के मुखिया की, शय्यातर की तथा उपाश्रय के आस-पास में सात घरों के अन्दर अन्य किसी की मृत्यु हो जाय तो एक दिन रात के लिए अस्वाध्याय रखना चाहिए । (१६) राजव्युद्ग्रह-राजाओं के बीच संग्राम हो जाय तो शान्ति होने तक तथा उस के बाद भी एक अहोरात्र तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । (२०) औदारिकशरीर-उपाश्रय में पंचेन्द्रिय तिर्यच का अथवा मनुष्य का निर्जीव शरीर पड़ा हो तो सौ हाथ के अन्दर स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। ये दश औदारिक सम्बन्धी अस्वाध्याय हैं । चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण को औदारिक अस्वाध्याय में इसलिए गिना है कि उन के विमान पृथ्वी के बने होते हैं । (२१-२८) चार महोत्सव और चार महाप्रतिपदा-आषाढ़ पूर्णिमा, आश्विन पूर्णिमा, कार्ति For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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