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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित । गुणों से युक्त था, तथा मान, उन्मान और प्रमाण से परिपूर्ण, एवं अंगोपांग-गत सौन्दर्य से भरपूर था, वह चन्द्रमा के समान सौम्य (शान्त), कान्त -मनोहर और प्रियदर्शन था, अर्थात् कुमार उज्झितक में शरीर के सभी शुभ लक्षण विद्यमान थे। ___ अब सूत्रकार निम्नलिखित सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के वाणिजग्राम नगर में पधारने के विषय में कहते हैं मूल-'तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढ़े । परिसा निग्गता राया निग्गो जहा कूणिो निग्गयो । धम्मो कहिओ । परिसा राया य पडिगो । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवो महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूती जाव लेसे छट्टछहणं जहा पराणत्तीए पढ़माए जाव जेणेव वाणियग्गामे तेणेव उवा० । वाणियग्गामे उच्चणीय. अड़माणे जेणेव रायमग्गे तेणेव अोगाढ़े। पदार्थ तेणं कालेणं-उस काल में । तेणं समएणं - उस समय में। समणे-श्रमण । भगवं-भगवान् । महावीरे-महावीर । समोसढ़े-पधारे । परिसा निग्गता-परिषद् -नगर की जनता भगवान् के दर्शनार्थ नगर से निकली। जहा-जिस प्रकार । कूणिो निग्गओ-महाराज कूणिक नगर से निकला था उसी प्रकार | राया-वाणिजग्राम का राजा मित्र भी। निग्गो -नगर से भगवान् के दर्शनार्थ निकला । धम्मो-भगवान् ने धर्मोपदेश । कहिओ-फरमाया । परिसा य और परिषद् -जनता तथा । राया-राजा । पडिगो -वापिस चले गये । तेणं कालेणं - उस काल में। तेणं समएणं-उस समय में । समणस्स-श्रमण । भगवओ - भगवान् । महावोरस्समहावीर के । जे?-ज्येष्ठ । अंतेवासी-शिष्य । इंदभूती-इन्द्रभूति । जाव-यावत् । लेसेतेजोलेश्या को संक्षिप्त किये हुए । छटुंछट्टेणं-बेले २ की तपस्या करते हुए । जहा--जिस प्रकार पराणत्तीए--श्री भगवती सूत्र में प्रतिपादन किया गया है, उसी प्रकार । पढ़माए-प्रथम प्रहर में स्वाध्याय कर । जाव-यावत् । जेणे--जहां । वाणियग्गामे-वाणिजग्राम नगर है। तेणे। वहीं पर । उवा० श्रा जाते हैं। वाणियग्गामे-वाणिजग्राम नगर में । उच्चणीय०-ऊंच, नीच सभी घरों में भिक्षार्थ अडमाणे-फिरते हुए । जेणेव-जहां । रायमग्गे -राजमार्ग-प्रधान मार्ग है। तेणेव-वहां पर श्रोगाढ़े-पधारे। मूलार्थ-उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी वाणिजग्राम नामक नगर में [नगर के बाहिर ईशान कोण में अवस्थित दूतीपलाश नामक उद्यान में पधारे। प्रजा उनके दर्शनार्थ नगर से निकली और वहां का राजा भी कूणिक नरेश की तरह भगवान के दर्शन करने को चला, भगवान् ने धर्म का उपदेश दिया, उपदेश को सुन कर प्रजा और राजा दोनों घापिस आगये । उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के प्रधान शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार जो कि तेजो-लेश्या को संक्षिप्त करके अपने अन्दर धारण किये हुए हैं (१) छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीरः समवसृतः । परिषद् निर्गता। राजा निर्गतो यथा कुणिको निर्गत: । धर्मः कथितः । परिषद् राजा च प्रतिगतः । तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महवीरस्य ज्येष्ठोऽन्तेवासी इन्द्रभूतिः यावत् लेश्यः षष्ठषष्ठेन यथा प्रज्ञप्तौ प्रथमायाँ यावत् यत्रैव वाणिजग्रामस्तत्रैवोपा. वाणिजग्रामे उच्चनीच० अटन् यत्रेव राजमार्गः तत्रैवावगाढ़ः । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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